SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया पीता रहता शराब। पीता रहता। फिर एकदम से शराब पीना बंद कर देता। मेंढक खीसे में रखता। घर चला जाता। एक दिन शराब की दुकान के मालिक ने कहा कि आज मेरी तरफ से पीयो। मगर यह राज अब बता दो। अब हमारी उत्सुकता बहुत बढ़ती जा रही है। माजरा क्या है? यह मेंढक को बार-बार लाते हो। इसको बिठा लेते हो! मुल्ला ने कहा, मामला कुछ भी नहीं है। राज छोटा-सा है। यह गणित है। जब यह मेंढक मुझे दो दिखाई पड़ने लगता है, तब मैं समझ जाता हूं कि बस, अब रुक जाना चाहिए। अब खतरे की सीमा आ गई! जल्दी से इसको--दोनों को उठा कर खीसे में रखता हूं और अपने घर की तरफ चला जाता हूं, क्योंकि अब जल्दी घर पहुंच जाना चाहिए, नहीं तो कहीं रास्ते में गिरूंगा। जब तक एक दिखाई पड़ता रहता है, तब तक पीता हूं। जब दो दिखाई पड़ता है, तो बस! मुल्ला अपने बेटे को भी शराब पीने के ढंग सिखा रहा था। बाप वही सिखाए, जो जाने। और तो क्या सिखाए! शराबी शराब पीना सिखाए। हिंदू हिंदू बनाए। जैन जैन बनाए। बौद्ध बौद्ध बनाए। जो जिसकी भावना! तो अपने बेटे को लेकर शराबघर गया। कहा कि एक बात हमेशा खयाल रखना। देखो--शराब पीना शुरू करो। और कहा कि वे जो उस टेबिल पर आदमी बैठे हैं दो, जब चार दिखाई पड़ने लगे तब रुक जाना! उसके बेटे ने कहा कि पिताजी, वहां सिर्फ एक ही आदमी बैठा हआ है! आपको अभी दो दिखाई पड़ रहे हैं! यह मुल्ला तो पीए ही हुए है। इसको तो दो दिखाई पड़ ही रहे हैं! अब यह कह रहा है, जब चार दिखाई पड़ने लगें, तो बस, पीना बंद कर देना! यह तो नशे में है ही। नशे में जो दिखाई पड़ता है, वह सत्य नहीं है। हां, सतत यत्न से तुम नशा पैदा कर सकते हो। सतत भावना से तुम अपने भीतर की रासायनिक प्रक्रिया बदल सकते हो। ये मनोविज्ञान के सीधे-सादे सूत्र हैं। अगर बार-बार तुम सोचते ही रहो, सोचते ही रहो, तो स्वभावतः उस सोचने का परिणाम यह होगा कि तुम्हारे भीतर भावना की एक पर्त बनती जाएगी। एक बहुत बड़ा सम्मोहनविद फ्रांस में हुआ। वह अपने मरीजों को...उसने बहुत मरीजों को सहायता पहुंचायी। वह उनको कहता, बस, एक ही बात सोचते रहो कि रोज, दिन-ब-दिन ठीक हो रहा हूं। सुबह से बस यही सोचो, पहली बात यही सोचो उठते वक्त। और रात सोते समय तक आखिरी बात यही सोचते रहो कि मैं ठीक हो रहा हूं। दिन-ब-दिन ठीक हो रहा हूं। तीन महीने बाद मरीज आया। उस चिकित्सक ने पूछा कि कुछ लाभ हुआ? उसने कहा, लाभ तो हआ। दिन तो बिलकुल ठीक हो गया, मगर रात बड़ी मुश्किल है! अब दिन-ब-दिन ठीक हो रहा हं--सो उसने बेचारे ने दिन का ही हिसाब रखा। सो दिन तो, उसने कहा कि बिलकुल ठीक गुजर जाते हैं, क्योंकि भावना बिलकुल मजबूत कर ली है। चौबीस घंटे एक ही भावना करता हूं कि दिन बिलकुल ठीक। मगर रात! रात बड़ी बेचैनी आ जाती है। वह जो दिन भर की बीमारी है, वह भी इकट्ठी हो कर रात फूटती है। Page 177 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy