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________________ ज्यों था त्यों ठहराया जैन को मसजिद में ले जाओ, उसे कोई अहोभाव अनुभव नहीं होता। लेकिन मुसलमान गदगद हो जाता है। यह सत्य किस बात की ओर इंगित करता है? गणेश जी को देख कर जो हिंदू नहीं, वह हंसेगा। जो हिंदू है, वह एकदम समादर से भर जाएगा। हनुमान जी को देख कर जो हिंदू नहीं है, वह सोचेगा, यह भी क्या पागलपन है! एक बंदर की पूजा हो रही है! और आदमी बंदर की पूजा कर रहे हैं! शर्म नहीं, संकोच नहीं, लाज नहीं! लेकिन जो हिंदू है, उसने एक भावना आरोपित की है। उसने एक चश्मा चढ़ा रखा है। तुम दुनिया के विभिन्न धर्मों पर विचार करो, तुम्हें बात समझ में आ जाएगी। जीसस को सूली हुई। एक जैन मुनि ने मुझसे कहा कि आप महावीर के साथ जीसस का नाम न लें, क्योंकि कहां महावीर और कहां जीसस! क्या तुलना! जीसस को सूली लगी! जैन हिसाब से तीर्थंकर को तो कांटा भी नहीं गड़ता है; सूली लगना तो बहुत दूर। जैन हिसाब से तीर्थंकर जब चलते हैं रास्ते पर, तो सीधे जो कांटे पड़े होते हैं, वे तत्क्षण उलटे हो जाते हैं कि कहीं तीर्थंकर के पैर में गड़ न जाएं। क्योंकि कोई पाप तो बचा नहीं, तो कांटा गड़ कैसे सकता है? पाप के कारण दुख होता है। पाप के कारण कांटा गड़ता है। अकारण नहीं कुछ होता। यही तो पूरा कर्म का सिद्धांत है। और जीसस को सूली लगी, तो जरूर पिछले जन्मों में कोई महापाप किया होगा अन्यथा सूली कैसे लगे! जैन को अड़चन होती है कि जीसस को महावीर के साथ रखो। इस आदमी को सूली लगी, जाहिर है, कि अकारण सूली नहीं लग सकती, तो जरूर कोई पिछला महापाप इसके पीछे होना चाहिए। और ईसाई उसी सूली को अपने गले में लटकाए हुए है। उसी सूली के सामने झुकता है। उसके लिए सूली से ज्यादा पवित्र और कुछ भी नहीं है। सूली उसके लिए प्रतीक है जीसस का। अगर तुम ईसाई से पूछो, महावीर के संबंध में, तो वह कहेगा कि जीसस के साथ तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि जीसस ने तो मनुष्य जाति के हित के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया। महावीर ने क्या किया? महावीर तो निपट स्वार्थी हैं। कोई अस्पताल खोला? कोई गरीबों के लिए भोजन जुटाया? बीमारों की सेवा की? कोढ़ियों के पैर दबाए? अंधों को आंखें दी? लंगड़ों को पैर दिए? क्या किया? तुम देखते ही हो कि मदर टेरेसा को नोबल प्राइज मिली। महावीर अगर जिंदा हो, तो नोबल प्राइज मिल सकती है? किस कारण? न तो अनाथालय खोलते हैं। न विधवा आश्रम खोलते हैं! निपट स्वार्थी हैं! अपने ध्यान और अपने आनंद में लगे हैं! इस स्वार्थी व्यक्ति की पूजा करने का प्रयोजन क्या है? इसने त्याग क्या किया है? और अगर धन-दौलत भी छोड़ी है, तो स्वार्थ के लिए छोड़ी है, क्योंकि धन-दौलत के कारण आत्मानंद में बाधा पड़ती है, ब्रह्मानंद में बाधा पड़ती है। मगर आनंद तो अपना है। इसने किसी दूसरे की चिंता की है इस व्यक्ति ने? Page 175 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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