SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया उसने कहा, मैं उदास इसलिए हूं कि मैं कभी डाक्टर होना ही नहीं चाहता था। मैं तो चाहता था नर्तक होना। लेकिन मेरे मां-बाप ने मुझे जबर्दस्ती मेडिकल कालेज में भर्ती करवा दिया-- मेरी इच्छा के खिलाई। मेरी जिंदगी बेकार गई। चकित हए उसके विद्यार्थी। उन्होंने कहा, आप क्या कहते हैं। इतने ख्याति प्राप्त आप हैं। आपकी जिंदगी बेकार गई! उसने कहा, ख्याति का क्या करूं? नाम का क्या करूं? जो मैं होना ही नहीं चाहता था, वह हो कर मैं क्या करूं? मैं जगत विख्यात चिकित्सक होने की बजाय बिलकुल अज्ञात-नाम नर्तक होना पसंद करता। वह मेरे हृदय का भाव होता। वह मेरी आत्मा की अभिव्यक्ति होती। न कोई मेरी नृत्य देखता--कोई चिंता नहीं। मगर मेरे फूल तो खिलते। मैं खिला ही नहीं। मैं एक उधार जिंदगी जीता रहा। मां-बाप तो कब के मर चुके, मगर मुझे फंसा गए। फिर बात इतनी देर हो गई थी कि अब नर्तक तो हो नहीं सकता हूं। यह जिंदगी तो गई! अगर कोई अगली जिंदगी होगी, तो अब नहीं सुनूंगा। तुम थोड़ा सोचो, अगर बुद्ध के मां-बाप ने बुद्ध को रोक लिया होता! पता नहीं चला उनको, नहीं तो रोकते ही। बुद्ध भी रात चुपचाप भाग गए थे। जानते थे कि अगर चुपचाप न गए, तो मुश्किल हो जाएगी। यशोधरा को, अपनी पत्नी को भी कुछ नहीं कहा। गए थे उसके कमरे तक, द्वार तक। द्वार से झांक कर देखा था। क्योंकि नया-नया बेटा पैदा हुआ था। जाने के पहले एक दफा बेटे को देख लेना चाहते थे। अपने बेटे को बुद्ध ने नाम दिया था--राहल। राहुल बनता है राह से! बुद्ध ने नाम राहुल इसीलिए दिया था कि वे संन्यासी की तैयारी कर रहे थे और बेटा पैदा हुआ! तो उन्होंने सोचा कि यह तो ऐसे है, जैसे कि चांद पर राहु लग जाए। अब यह बेटे का मोह मुझे कहीं रोक न ले! इससे अपने को सचेत रखने के लिए उसको राहल नाम दिया था--कि यह कहीं बेटे का मोह मुझ पर राहु बन कर न छा जाए! कहीं मुझे ग्रहण न लग जाए! जाते-जाते एक दफा देख लेना चाहते थे कि बेटे का चेहरा तो देख लूं--फिर दोबारा मौका मिले न मिले! मगर बेटा मां की छाती से लगा सोया था। उसका चेहरा नहीं देख पाए। और भीतर जाने की हिम्मत नहीं की कि अगर बेटे का चेहरा देखने की कोशिश की और अगर यशोधरा जाग गई, तो अड़चन हो जाएगी--कि आधी रात तुम कहां जा रहे हो? कहां की तैयारी है? रथ किसलिए तैयार है? तुमने ये वस्त्र घर से बाहर जाने के क्यों पहन रखे हैं? और आधी रात बेटे को देखने क्यों आए हो? सुबह क्यों नहीं आ सकते थे? कहीं कोई झंझट खड़ी न हो जाए! घर जाग न जाए! चुपचाप, बिना बेटे को देखे चले गए। और बारह साल बाद जब बुद्धत्व को पा कर लौटे, तब भी बाप नाराज थे! पत्नी नाराज थी! बारह साल बाद यह बेटा एक जीता-जागता सूरज होकर लौटा था, लेकिन बाप को नहीं दिखाई पड़ रहा था। बाप तो एकदम गुस्से में थे। एकदम चिल्लाने लगे। नाराज होने लगे। मोह ऐसा है! Page 166 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy