SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्यों था त्यों ठहराया तो गांधी को हटाना चाहा होगा। कह नहीं सकते सीधा-साधा। नाथूराम गोडसे ने छुटकारा दिला दिया, तो राहत की सांस ली थी भारत के इन तथाकथित नेताओं ने--कि झंझट मिटी! अब हम निश्चिंतता से जो करना है करें! अब कोई बाधा न रही, कोई कांटा न रहा! आदमी बहुत चालबाज है। फिर रोएंगे--और भाषण देंगे--और हर तरह का शोरगुल मचाएंगे कि बड़ा इनके ऊपर, छाती पर दुख आ पड़ा है। टूटे जा रहे हैं, मरे जा रहे हैं! और हर साल श्रद्धांजलि चढ़ाए जा रहे हैं! और राजघाट पर बैठकर चरखा चलाए जा रहे हैं! मन के इन सारे धोखों से जागना, मन के इस पाखंड से जागना ध्यान है। लेकिन डर लगता है जागने में, क्योंकि तब तुम्हें अपनी सारी बेईमानियां देखनी पड़ें--अपने सारे जाल, जो तुमने ही बिछाए हैं--अपनी सारी गंदगी! और मंजु तू कहती है कि बूढा, कुरूप, गंदा--पीछा नहीं छोड़ता! बूढा है निश्चित, क्योंकि बहुत प्राचीन है। सदा-सदा से, जन्मों-जन्मों से पीछे लगा है। कुरूप भी है, गंदा भी है। लेकिन पीछा नहीं छोड़ता, उसका कारण यह है कि उसकी गंदगी देखने की, उसकी कुरूपता देखने की क्षमता तू नहीं जुटा पा रही है। अगर उसे पूरी भर आंख ले, तो वह सदा के लिए विदा हो जाए। और उस पर आंख गड़ा कर ही देखना होगा। आंख गड़ा कर देखने का नाम ही ध्यान है। लेबिल मत लगाओ कि गंदा है, कुरूप है, बूढा है। पहचानो--देखो। और निर्णय लेने की जल्दी मत करो। सिर्फ देखो। काफी है देखना। दर्शन काफी है। बस, रोशनी का जलाना काफी है। रोशनी के जलते ही एक क्रांति होती है, वह क्रांति समझने जैसी है। जो है, वह तो प्रगट हो जाता है--रोशनी के जलते ही। अंधेरे में प्रकट नहीं होता था। जो है, वह अंधेरे में दबा रहता है। और जो नहीं है, वह प्रकट होता है। जब तुम एक अंधेरे कमरे में प्रवेश करते हो, तो अंधेरा ही अंधेरा दिखाई पड़ता है। दीवालों पर लटकी हई संदर तस्वीरें दिखाई नहीं पड़ती। छप्पर से लटका हुआ फान्स दिखाई नहीं पड़ता। कमरे में जमा हुआ तरतीब से, सुंदर फर्नीचर, दिखाई नहीं पड़ता। जो है, वह दिखाई नहीं पड़ता। और जो नहीं है, वह दिखाई पड़ता है। अंधकार! फिर जलाओ दीया, तो फर्नीचर विदा नहीं हो जाएगा। फर्नीचर छलांग लगा कर भाग नहीं निकलेगा। और न ही दीवारों से तस्वीरें निकल कर नदारद हो जाएंगी। सिर्फ अंधेरा मिटेगा। तस्वीरें प्रकट होंगी। जो है, वह ध्यान में प्रकट होता है; और जो नहीं है, वह विदा हो जाता है। अहंकार नहीं है; मन नहीं है। आत्मा है। परमात्मा है। ध्यान इस अभूतपूर्व घटना को तुम्हारे भीतर घटा देता है। मंजु! ध्यान में डूब। और ध्यान की ही सुगंध प्रेम है। ध्यान का फूल खिले, तो प्रेम की सुगंध अपने आप बिखरी है। Page 105 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy