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________________ ज्यों था त्यों ठहराया कठौती में गंगा! कठौती में कहीं गंगा होगी? पागल हो गए? मन कितना ही चंगा हो। मन क्या खाक चंगा होगा? जब कठौती में गंगा होगी, तो मन क्या खाक चंगा होगा? गंगा तो बहे। लेकिन तुमने गंगा की कथा पढ़ी न...। भगीरथ ने बड़े प्रयास से...इतना प्रयास किया कि भगीरथ का काम ही महाप्रयास का पर्यायवाची हो गया। अब जब कभी कोई बड़ा प्रयास करता है, तो उसको हम कहते हैं--भगीरथ प्रयास! भगीरथ ने इतना प्रयास किया कि आकाश से गंगा को उतार लाए। लेकिन गंगा आधी ही आ पाई। आधी आकाश में ही रह गई। यह सूचक है। जितना जाना है, उतना शब्द में न ला सकोगे। जितना भीतर है, उतना बाहर न ला सकोगे। आधा ही आ जाए, तो बहत। भगीरथ सौभाग्यशाली रहे होंगे कि आधा भी आ गया। आधा तो स्वर्ग में ही रह गया। आधा तो अनुभव के लोक में ही रह गया। आधा तो परलोक में ही रह गया! आधा तो आकाश में ही रह गया। आधा पृथ्वी पर उतरा। लेकिन गंगोत्री में गंगा की जो पवित्रता है, जो शुद्धता है, जो निश्चलता है, वह फिर वाराणसी की गंगा में नहीं है। वाराणसी की गंगा तो गंदी है। गंदा नाला है। फिर तो कितना कूड़ा-करकट मिल गया उसमें! फिर तो कितनी नालियां और नाले गिरते गए, गिरते गए, गिरते गए! वैज्ञानिक कहते हैं: आज गंगा से ज्यादा गंदी कोई नदी नहीं है। उसमें तुम डुबकियां मार रहे हो! लाशें गंगा में डाली जाती हैं। मुर्दे गंगा में बहाए जाते हैं। और फिर इतने पापी अपने पाप गंगा में धोते हैं! जरा सोचो--तो कितने पापी कितनी सदियों से पाप गंगा में धोते रहे! अगर इन सबके पाप गंगा में धुल गए हैं, तो भूल कर गंगा को छूना भी मत, क्योंकि पाप बुरी बला है। अंगुली में भी लग जाए, तो धीरे-धीरे भीतर प्रवेश कर जाए! गंगा तो बिलकुल अछूत समझना। यह तो शूद्र हो गई! अब उसमें डुबकी मार रहे हो। आशा यही है कि तुम और थोड़े पाप ले कर घर आ जाओगे! अब यह गंगा तुम्हारे पाप क्या छुड़ाएंगी? तुम कीचड़ से कीचड़ को धो रहे हो। मगर यही दशा धर्म की होती है। अनुभव के लोक में तो धर्म पूरा होता है, एक होता है, अखंड होता है। अभिव्यक्ति में आते ही, बाहर उतरते ही आधा हो जाता है। फिर जब तक तुम तक पहुंचे, फिर तुम समझो। और आधे में आधा हो गया। फिर तुम किसी और से कहो--और आधे में आधा हो गया! और अब तो बात इतनी पुरानी हो गई कि अब तो पता ही नहीं कि किसने किससे कहा! कितने लोगों ने किसको दिया? कैसे बात चलती रही! कानों में कान--एक दूसरे को लोक फूंकते रहे; एक दूसरे के कान में डालते रहे! और हम आग्रह करते हैं इस बात का कि हमारा धर्म बहुत पुराना! जितना पुराना, उतना श्रेष्ठ। इस गलती में मत पड़ना। जितना पुराना--उतना सड़ा। Page 10 of 255 http://www.oshoworld.com
SR No.009965
Book TitleJyo tha Tyo Thaharaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages255
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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