SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज अचित्त देव-माणुस-तिरिक्ख जादं च मेहुणं च चदुधा। तिविहेण तंण सेवदि णिचं पि मुणि ही पयदमणो।। ज्ञानार्णव 11/7-9 आवश्यक सूत्र / पृ.44 ठाणं/5/578 आवश्यक सूत्र / पृ. 44 में उद्धृत जैन लक्षणावली पृष्ठ 935 में उद्धृत मैथुन संज्ञा वेदोदयजनितो मैथुनाभिलाष: (स्थानांग 4/4 जीवाजी, मलय वृ. 13) जैन लक्षणावली पृष्ठ 935 में उद्धृत मैथुन संज्ञा मैथुनाभिलाषा वेदमोहोदयजो जीव परिणामः। (आव. हरि. वृ. 4. पृ580) ठाणं 4/581 आवश्यक सूत्र पृष्ठ 44 ठाणं सूत्र /2/206 प्रश्नव्याकरण (मधुकर मुनि) 1/4/1 (विवेचन से उद्धृत) समवाओ 5/3 (टिप्पण संख्या 2) में उद्धृत स्थानांग वृत्ति पत्र 277 (समवाओ 5/3, टिप्पण संख्या 2 में उद्धृत) समवाओ 5/3, (टिप्पण संख्या 2) से उद्धृत- समवायांग वृत्ति पत्र 10 ठाणं 5/5 ठाणं 3/501 सू. चू. 1 पृष्ठ 177 (निरुक्त कोष से उद्धृत) दसवै /2/4 का टिप्पण संख्या 17 में उद्भत, ठाणं 4/136, टी. प. 190 बहिद्धा-मैथुनम ठाणं 3/510 ठाणं 4/74 ठाणं 5/54 ठाणं 5/54 टिप्पण संख्या 48 में उद्धृत भगवती/शतक 7/ उद्देशक 7/6-11 उत्तरज्झयणाणि 5/5, टिप्पण संख्या 7 में उद्धृत चूर्णि पृ. 131 उत्तराध्ययन वृहद् वृत्ति दसवेआलियं 2/टिप्पण संख्या 11 74 39. ०-NM 1000000० 51.
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy