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________________ चक्रवर्ती राजा बनूं ऐसा संकल्प) कर लिया। उसका उन्होंने प्रतिक्रमण (प्रायश्चित्त) नहीं किया। उसका फल यह हुआ कि वे ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती बने और धर्म को जानते हुए भी निकाचित कर्म के उदय के कारण काम-भोगों में मूर्छित ही रहे और मृत्युपरांत सर्वोत्कृष्ट नरक अप्रतिष्ठान नामक सातवीं नरक में गए। भगवती आराधना के अनुसार एकान्त में स्त्री के साथ पुरुष का और पुरुष के साथ स्त्री का होना तथा अंधकार काम सेवन की अभिलाषा का निमित्त है। शरीर विज्ञान और काम वासना - शरीर शास्त्र की दृष्टि से काम वासना की उत्पत्ति के कारणों की व्याख्या करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि इसके लिए अन्त:स्रावी ग्रंथियां और नाड़ी संस्थान भी काफी जिम्मेदार हैं। आप इस तथ्य की पुष्टि वैज्ञानिक आधार पर करते हैं। उनके अनुसार हमारी इंद्रियों द्वारा प्राप्त सूचनाएं (दृश्य आदि) विद्युत आवेग के द्वारा मस्तिष्क में स्थित हाइपोथेलेमस के अमुक भाग को उत्तेजित करते हैं तथा हाइपोथेलेमस पिट्यूटरी ग्रंथि के अग्र भाग को सक्रिय करता है। तब इस ग्रंथि से गानोड़ोट्रॉफिन नामक हार्मोन निकलता है जो गोनाड्स को उत्तेजित करता है तब गोनाड्स (काम ग्रंथि) अपना लैंगिक हार्मोन एन्ड्रोजन का स्राव करती है जो रक्त के माध्यम से मस्तिष्क में पहुंच कर नाड़ी तंत्र को प्रभावित करता है। फलस्वरूप हृदय, नब्ज और श्वास की गति में वृद्धि हो जाती है। रक्तचाप बढ़ जाता है। मांस पेशियों में तनाव पैदा हो जाता है और काम भावना उद्दीप्त हो जाती है। यह व्यवहारसिद्ध है कि डर, क्षोभ आदि की स्थिति में वासना के बाह्य निमित्त उत्पन्न होने पर भी काम वासना की भावना जागृत नहीं होती। इसका कारण है कि मस्तिष्क में अन्य विचारों के चलते हाइपोथेलेमस को संदेश नहीं पहुंच पाता अत: पिट्यूटरी से स्राव नहीं हो पाते हैं। 4.0 उपमाएं अनियंत्रित काम भोग न केवल एक समस्या है बल्कि अनेक समस्याओं की जननी भी है। जैन आगमों में इस समस्या के निराकरण का विस्तृत मार्गदर्शन मिलता है। आध्यात्मिक मार्गदर्शन की एक विख्यात विधि है - उपमाएं। सामान्य व्यक्ति गूढ़ आध्यात्मिक सूत्रों को सहजता से नहीं समझ पाता। परंतु उपमा के माध्यम से उसे सरलता से समझ जाता है। जैन आगमों में विशेष कर उत्तराध्ययन सूत्र में काम भोगों से विरक्ति के लिए विभिन्न उपमाओं का सुंदर चित्रण किया गया है। 4.1. सूअर - सूअर एक तुच्छ और घृणित कोटि का जंतु माना जाता है। इसके प्रति जुगुप्सा का प्रमुख कारण है - विष्ठा भक्षण। विष्ठा के प्रति इसका इतना आकर्षण होता है कि इसके लिए चावलों की भूसी जो कि एक पौष्टिक पशु आहार है का भी वह त्याग कर देता है। उत्तराध्ययन सूत्र में दुःशील व्यक्ति को सूअर से उपमित किया गया है क्योंकि दु:शील 62
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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