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________________ (2) स्त्री संसर्ग की अपेक्षा दिगम्बर परम्परा में स्त्री संसर्ग की अपेक्षा से शील के अठारह हजार अंगों का वर्णन इस प्रकार भी मिलता हैं। 83 काष्ठ, पाषाण, चित्राम (तीन प्रकार की अचेतन स्त्री) x मन और काया = 3x2=6 (यहां वचन को नहीं लिया गया है।) कृत-कारित-अनुमोदना 6x3=18, पांच इन्द्रियां 18x5=90, द्रव्य और भाव 90x2=180, क्रोध-मान-माया-लोभ 180x4=720, ये तो अचेतन स्त्री के आश्रित हैं। देवी, मनुष्यणी, तिर्यञ्चनी (3 प्रकार की चेतन स्त्री) - मन-वचन-काया 3x3=9. कृत-कारित-अनुमोदना 9x3=27. पांच इन्द्रियां 27x5=135. द्रव्य भाव 135x2=270. चार संज्ञा 270x4=1080. सोलह कषाय 1080x16=17,280. अचेतन स्त्री और चेतन स्त्री के कुल योग 720 + 17280= 18,000. मुनिश्री सुमेरमलजी 'लाडनूं' ने 18,000 शीलों की व्याख्या दिगम्बर ग्रंथों का संदर्भ देते हुए इस प्रकार की है। स्त्री के चार प्रकार हैं - 1. मनुष्यणी 2. देवांगना 3. पशु स्त्री 4. स्त्री चित्र। इन चारों के साथ तीन करण व तीन योग से अब्रह्म का सेवन नहीं करना । इस प्रकार 4x3x3 = 36 भेद हो गए। इन 36 प्रकारों का पांच इन्द्रियों से सेवन नहीं करना। इस प्रकार 36x5 = 180 भेद हो गए। विषय भोग उत्पन्न होने वाले दस संस्कारों से दूर रहना। इस प्रकार 180x10 = 1800 भेद हो गए। दस संस्कार ये हैं - 1. शरीर संस्कार 2. शृंगार संस्कार 3. अनंग क्रीड़ा 4. संसर्ग वांछा 5. विषय संकल्प 6. शरीर निरीक्षण 7. शरीर विभूषा 8. विषय पार्थदान 9. भोग स्मरण 10. मनश्चिंता दस संभोग प्रक्रिया और परिणाम से बचना। इस प्रकार 1800x10 = 18,000 भेद हो गए। दस संभोग प्रक्रिया और परिणाम ये हैं - 1. काम चिंता 2. अंगावलोकन 3. दीर्घ नि:श्वास 4. शरीरार्ति 5. शरीर दाह 6. मंदाग्नि 7. मूर्छा 8. मदोन्मत्तता
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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