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________________ जे णो करंति मणसा, णिज्जि आहारसन्ना सोइंदिये। पुढविकायारंभ, खंतिजुत्ते ते मुणी वंदे।। 2 यह एक गाथा है। दूसरी गाथा में 'खंति' के स्थान पर 'मुत्ति' शब्द आएगा, शेष ज्यों का त्यों रहेगा। तीसरे में 'अज्जव' आएगा। इस प्रकार 10 गाथाओं में दस धर्मों के नाम क्रमश: आएंगे। फिर ग्यारहवीं गाथा में 'पुढवी' के स्थान पर 'आउ' शब्द आएगा। 'पुढवी' के साथ दस धर्मों का परिवर्तन हुआ था उसी प्रकार 'आउ' शब्द के साथ भी होगा। फिर 'आउ' के स्थान पर क्रमशः 'तेउ', 'वाउ', 'वणस्सई', 'बेइंदिय', 'तेइंदिय', 'चतुरिंदिय', पंचेन्द्रिय' और 'अजीव' - ये दस शब्द आएंगे। प्रत्येक के साथ दस धर्मों का परिवर्तन होने से एक सौ (10x10) गाथाएं हो जाएगी। 101वीं गाथा में 'सोइंदिय' के स्थान पर 'चक्खुरिंदिय' शब्द आएगा। इस प्रकार पांच इन्द्रियों की पांच सौ (100x5) गाथाएं होगी। फिर 501 में 'आहार सन्ना' के स्थान पर 'भयसन्ना' फिर 'मेहुणसन्ना' और 'परिग्रह सन्ना' शब्द आएंगे। एक संज्ञा के 500 होने से 4 संज्ञा के 500x4 = 2000 होंगे। फिर 'मणसा' शब्द का परिवर्तन होगा। 'मणसा' के स्थान पर 'वयसा', 'कायसा' आएगा। एक-एक का 2000 होने से तीन योगों के 2000x3 = 6000 होंगे। फिर 'करंति' शब्द में परिवर्तन होगा। 'करंति' के स्थान पर 'कारयंति' और 'समणुजाणंति' शब्द आएंगे। एक-एक के 6000 होने से तीनों करण के 18,000 (6000x3) हो जाते हैं। ये अठारह हजार शील के अंग हैं। इन्हें रथ में इस प्रकार उपमित किया जाता है। जे णो करंति 6000 जे णो जे णो । | कारयति । समणजाति | 6000 6000 मणसा 2000 वयसा 2000 कायसा 2000 णिज्जिय | णिज्जिय णिज्जिय । | णिज्जिय आहारसन्ना | भयसन्ना | मेहणसन्ना | परिगहसन्ना 500 | 500 500 500 श्रोत्रेन्द्रिय | चक्षुरिन्द्रिय | घ्राणेन्द्रिय | रसनेन्द्रिय | स्पर्शनेन्द्रिय 100 | 100 100 100 100 पृथ्वी । तेजस् । वायु वनस्पति | चतुरिन्द्रिय | पंचेन्द्रिय | अजीव 10 10 10 10 10 10 | 10 शान्ति आर्जव लाघव मृति मार्दव 4 सत्य 16 | ब्रह्मचर्य | अकिंचनता 3 5 10 15
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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