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________________ सहज विकास होता रहता है। तप को परिभाषित करते हुए दसवैकालिक की चूर्णि में जिनदास गणि ने कहा है'तवोणाम तावयति अट्ठविहं कम्मगंठि नासेतित्ति वुंत्तं भवई' अर्थात् जो आठ प्रकार की कर्म ग्रंथियों को तपाता है, उनका नाश करता है वह तप है।" तप के मुख्यतः दो भेद बताए गए हैं - (1) बाह्य तप और (2) आभ्यन्तर तप । बाह्य तप उत्तराध्ययन सूत्र की शान्त्याचार्य वृहद् वृत्ति के अनुसार इसमें बाहरी द्रव्य अशन, पान आदि का त्याग होता है तथा यह मुक्ति का बाह्य साधन है इसलिए इसे बाह्य तप कहा गया है। उत्तराध्ययन सूत्र में बाह्य तप के छह प्रकार बताए हैं - (1) अनशन (2) ऊनोदरी (3) भिक्षाचर्या (4) रसपरित्याग (5) कायक्लेश (6) प्रतिसंलीनता । 42 43 आभ्यन्तर तप जो तप अन्तः शरीर यानी सूक्ष्म शरीर को अधिक तपाता है, जिससे कर्म शरीर क्षीण होता है, वह आभ्यन्तर तप कहलाता है। इस तप का स्थूल शरीर पर विशेष प्रभाव दिखाई नहीं देता। अन्दर ही अन्दर कर्म शरीर (संस्कार शरीर) के क्षय की प्रक्रिया चलती रहती है। मोक्ष साधना का अन्तरंग कारण होने से इस तप को आभ्यन्तर तप कहा जाता है। इसके भी छह प्रकार हैं- (i) प्रायश्चित्त (ii) विनय (iii) वैयावृत्य (iv) स्वाध्याय (v) ध्यान (vi) कायोत्सर्ग । 3.1. अनशन दसवैकालिक सूत्र की अगस्त्यसिंह चूर्णि में अनशन की परिभाषा इस प्रकार है'असणं भोयणं तस्स परिक्षातो अणसणं' अर्थात् अशन का अर्थ है भोजन उसका परित्याग करना अनशन है। यहाँ अनशन के दो प्रकार बताए हैं (1) इत्वरिक और (2) यावत्कथिक । इत्वरिक -सीमित अवधि तक किया जाने वाला अल्पकालिक अनशन इत्वरिक कहलाता है। इसकी अवधि उपवास से छह मास तक होती है। 44 यावत्कथिक - जीवन भर के लिए भोजन का परित्याग करना । ब्रह्मचर्य विकास के लिए शरीर का अनुकूल होना आवश्यक है मांस, रक्त आदि धातुओं की अतिरिक्त मात्रा विकारों को उत्तेजित करने वाली होती है। अनशन से धातुओं की अतिरिक्त मात्रा नियंत्रित हो जाती है। जिससे शरीर में हल्कापन रहता है। फलतः ब्रह्मचर्य का 46 47 विकास सरलता से होता है। आचारांग, ठाणं, व्यवहार सूत्र " आदि ग्रन्थों में ब्रह्मचर्य विकास के लिए अनशन का निदर्शन मिलता है। 3.2 45 ऊनोद ब्रह्मचर्य का संबंध जितना मन से है, उतना ही शरीर से है। शरीर जितना हल्का होगा 172
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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