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________________ को वासना का प्रतीक मानने से यह प्रतिबोध स्त्री-पुरुष दोनों के लिए समान उपयोगी है। स्त्री संस्तव का प्रायश्चित्त - निशीथ सूत्र में साधु के विभिन्न स्थलों पर अकेली स्त्री के साथ रहने, विहार आदि विभिन्न कार्य करने, उपाश्रय में उसे रहने देने का प्रायश्चित्त गुरुचौमासिक बताया गया है। 2.3 स्त्री-कथा का वर्जन कथा का अर्थ है - वचन पद्धति। स्थानांग वृत्ति में विकथा का अर्थ है "जिस कथा से संयम में बाधा उत्पन्न होती है अर्थात् ब्रह्मचर्य प्रतिहत होता है, स्वाद वृत्ति बढती है, हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है और राजनीतिक दृष्टिकोण का निर्माण होता है उसे विकथा कहते हैं। 180 आवश्यक सूत्र में विकथा का अर्थ संयम को दूषित करने वाली एवं निरर्थक वार्तालाप से हैं। ठाणं सूत्र में विकथा के चार प्रकार बताए गए हैं- 1. स्त्री कथा 2. भक्त कथा 3. देश कथा और 4. राज कथा। 82 2.3.1 स्त्री कथा का अर्थ - विभिन्न आगमों एवं उनकी व्याख्याओं में स्त्री कथा का अर्थ कुछ-कुछ भिन्नताओं के साथ किया गया है। ठाणं सूत्र - केवल स्त्रियों में कथा करना अथवा स्त्री की कथा करना। समवायांग - स्त्री की कथा। 4 दसवैकालिक - स्त्री संबंधी काम-राग बढ़ाने वाली बातें करना तथा एकान्त स्थान में केवल स्त्रियों के बीच प्रवचन करना। उत्तराध्ययन - केवल स्त्रियों के बीच कथा करना तथा स्त्री संबंधी कथा करना आवश्यक वृत्ति - अकेली स्त्रियों में कथा करना। 2.3.2. स्त्री कथा के प्रकार - ठाणं सूत्र में स्त्री कथा के चार प्रकार बताए गए हैं (क) स्त्री जाति की कथा - जैसे 'यह क्षत्रियाणी है', 'यह ब्राह्मणी है' आदि। वृत्तिकार ने इसके स्वरूप को सोदाहरण इस प्रकार कहा है धिग् ब्राह्मणीर्धवाभावे: या जीवन्ति मृताइव। धन्या मन्ये जने शद्री, पतिलक्षेऽप्यनिन्दिता।। ब्राह्मणी को धिक्कार है, जो पति के मरने पर जीती हुई भी मृत के समान है। मैं शुद्री को धन्य मानता हूँ जो लाख पतियों का वरण करने पर भी निन्दित नहीं होती है। (ख) कुल कथा - जैसे यह 'उग्र कुल की है', 'द्रविड़ कुल की है' आदि। वृत्तिकार ने इसे इस प्रकार स्पष्ट किया है अहो चौलुक्य पुत्रीणां, साहसं जगतोऽधिकम्। 133
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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