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________________ 4. ब्रह्मचर्य : सुरक्षा के उपाय 1.0. ब्रह्मचर्य सुरक्षा का महत्त्व साधना के विभिन्न आयामों में ब्रह्मचर्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील आयाम है। जिस प्रकार एक छोटे से छिद्र की उपेक्षा कर देने से बड़े-बड़े बांध विनष्ट हो जाते हैं, उसी प्रकार विषय-वासना, को उद्दीप्त करने वाले छोटे से निमित्त की उपेक्षा करने से ब्रह्मचर्य विनष्ट हो सकता है। इसलिए जैन आगमों में ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के संदर्भ में बहुत अधिक सजगता रखी गई है। ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के अनेक सूत्र स्थान-स्थान पर मिलते हैं। इतना ही नहीं ठाणं', समवायांग,तथा आवश्यक सूत्र में 'ब्रह्मचर्य की गुप्तियों' के रूप में नौ-नौ नियमों का क्रमबद्ध और व्यवस्थित रूप से उल्लेख है। इसी प्रकार उत्तराध्ययन सूत्र में सोलहवां अध्ययन 'ब्रह्मचर्य समाधिस्थान' के नाम से है, जिसमें ब्रह्मचर्य समाधि (सुरक्षा) के दस स्थान का वर्णन है। मूलाचार एवं अणगार धर्मामृत में भी कुछ साम्य एवं कुछ विविधता के साथ ब्रह्मचर्य सुरक्षा के उपाय निर्दिष्ट किए गए हैं। 2.0. ब्रह्मचर्य सुरक्षा के उपाय ब्रह्मचर्य साधना में विघ्न बाधाओं से सुरक्षा के लिए लिंग भेद नहीं होता। पुरुष और स्त्री दोनों ही इसकी साधना करते हैं। प्राचीन शास्त्रों में पुरुष वर्ग को ही सामने रखकर बातें कही गई हैं। जहां पुरुष के लिए स्त्रियों से बचाव आदि का उल्लेख है। वहाँ स्त्रियों के लिए पुरुष को जानना चाहिए। जैन आगमों में मुख्यतः मुनियों को ही सम्बोधित किया गया है। इसलिए बहुत सी बातें मुनियों से ही संबंधित हैं। फिर भी एक सद्गृहस्थ के लिए ब्रह्मचर्य की साधना में ये नियम उतने ही उपयोगी हैं। 2.1.0. विविक्तशयनासन - प्रायः सभी संबंधित ग्रंथों में ब्रह्मचर्य का प्रथम सुरक्षा चक्र हैविविक्तशयनासन। इसका अर्थ है ऐसे स्थान में निवास नहीं करना जो स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त हो। कामवासना का प्रारंभ संसर्ग से होता है। इसलिए सूत्रकृतांग सूत्र में एक मुनि के लिए गृहस्थों के साथ एक स्थान पर रहने का निषेध है। स्थानांग, समवायांग, दसवैकालिक, उत्तराध्ययन एवं आवश्यकवृत्ति आदि ग्रंथों में भी विविक्तशयनासन को ब्रह्मचर्य सुरक्षा स्थान में प्रथम स्थान पर रखा गया है।' उत्तराध्ययन सूत्र में केवल स्त्री आदि से आकीर्ण स्थान ही नहीं, स्त्रियों के मनोरम चित्रों से युक्त, माल्य व धूप से सुवासित, किवाड़ सहित सजे-धजे स्थानों को भी काम-राग की वृद्धि करने वाला मानते हुए न केवल वहां निवास करने का बल्कि वहां निवास करने की अभिलाषा करने तक का निषेध है। सूत्रकार मानते हैं कि यद्यपि तीन गुप्तियों से गुप्त मुनियों को विभूषित देवियां भी विचलित नहीं कर सकती फिर भी ऐसे स्थानों में इन्द्रियों पर नियंत्रण करना 121
SR No.009963
Book TitleJain Vangmay me Bramhacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinodkumar Muni
PublisherVinodkumar Muni
Publication Year
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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