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________________ एक बात सदैव ध्यान में रखनी चाहिए कि शास्त्राज्ञा के सामने हम और आप जैसे अल्पज्ञ लोगों के द्वारा कल्पित युक्तियाँ-तर्क निर्णय के हेतु नहीं बन सकते / मुनिचर्या हमारी इच्छा के अनुसार नहीं अपितु आगम की आज्ञा के अनुसार चलती है। आगम प्रमाण के बिना मात्र युक्ति से खण्डन-मण्डन करना काश के फूल की तरह गन्धरहित होने से बुद्धि की खुजलाहट मात्र है / अपनी बतायी युक्ति भी ठीक नहीं है, क्योंकि वह अप्रामाणिक होती है / (चैतन्य चन्द्रोदय-पृष्ठ 123 20 क्योंकि - जो किये जाने वाले कार्य का निषेध नहीं करता है तो वह उसका अनुमोदक माना जाता है / (तत्त्वार्थवार्तिक-६/८/९ - पृष्ठ 711) मिथ्या मत का निषेध करना अनिवार्य है। जितनी अनिवार्यता सम्यक मार्ग की स्थापना की है, उतनी ही अनिवार्यता मिथ्या मत के निरसन की होनी चाहिए / (स्वरूप-सम्बोधन परिशीलन -पृष्ठ 59) जब अनागम का आप कथन करेंगे, आगम का अपलाप करेंगे, तब तीव्र अशुभ कर्म का आस्रव होगा / अनुवीचि (आगम के अनुसार) भाषण का प्रयोग करने वाला ही समाधि की साधना को प्राप्त करता है / जो आगम के विरुद्ध भाषण करते हैं, वे वर्तमान में भले ही पूर्व पुण्य के नियोग से यश को प्राप्त हो रहे हो, परन्तु अन्तिम समय कष्ट से व्यतीत होता है, साथ ही भविष्य की गति भी नियम से बिगडती है। अहो प्रज्ञ! पुद्गल के टुकड़ो के पीछे आगम को तो नहीं तोड़ना / ... जिनवाणी के विरुद्ध आलाप का फल तो दर्गती ही होगी / (स्वरूपसम्बोधन परिशीलन- पृष्ठ 102) जो व्यक्तिवैभव और विभुतियों से दबा रहता है, वह महान नहीं बन सकता है / (तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा(खण्ड 1)- पृष्ठ 193) तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (खण्ड 1)/ डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री -/* आचार्य शान्तिसागर छानी ग्रन्थमाला, बुढ़ाना+२* सन 1992 इससे विपरीत जो जीर्ण मन्दिर, जीर्ण संयमी आदि का उद्धार (स्थितिकरण करता है वह पूर्व से भी अधिक पुण्य को प्राप्त करता है / (दानशासनम् -3/12, पृष्ठ 27) - कड़वे सच ...................-165 -- .... कड़वे सच...
SR No.009960
Book TitleKadve Such
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuvandyasagar
PublisherAtmanandi Granthalaya
Publication Year
Total Pages91
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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