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________________ मोक्षमाला -शिक्षापाठ ३२.विनयसे तत्त्वकी सिद्धि है ध्यानमें रखना चाहिये कि सब प्राणियोंको अपना जीव प्यारा है; और सब जीवोंकी रक्षा करना इसके जैसा एक भी धर्म नहीं है।" अभयकुमारके भाषणसे श्रेणिक महाराजा संतुष्ट हुए, सभी सामंत भी प्रतिबुद्ध हुए। उन्होंने उस दिनसे मांस न खानेकी प्रतिज्ञा की; क्योंकि एक तो यह अभक्ष्य है, और किसी जीवको मारे बिना मिलता नहीं है, यह बडा अधर्म है। इसलिये अभय मंत्रीका कथन सुनकर उन्होंने अभयदानमें ध्यान दिया, जो आत्माके परम सुखका कारण है। शिक्षापाठ ३२ : विनयसे तत्त्वकी सिद्धि है। श्रेणिक राजाका दृष्टांत राजगृही नगरीके राज्यासनपर जब श्रेणिक राजा बिराजमान था तब उस नगरीमें एक चांडाल रहता था। एक बार उस चांडालकी स्त्रीको गर्भ रहा तब उसे आम खानेकी इच्छा उत्पन्न हुई। उसने आम ला देनेके लिये चांडालसे कहा। चांडालने कहा, "यह आमका मौसम नहीं है, इसलिये मैं निरुपाय हूँ; नहीं तो मैं आम चाहे जितने ऊँचे स्थानपर हों वहाँसे अपनी विद्याके बलसे लाकर तेरी इच्छा पूर्ण करूँ।" चांडालीने कहा, "राजाकी महारानीके बागमें एक असमयमें आम देनेवाला आम्रवृक्ष है, उसपर अभी आम लचक रहे होंगे, इसलिये वहाँ जाकर आम ले आओ।" अपनी स्त्रीकी इच्छा पूरी करनेके लिये चांडाल उस बागमें गया। गुप्तरूपसे आम्रवृक्षके पास जाकर मन्त्र पढकर उसे झुकाया और आम तोड लिये। दूसरे मंत्रसे उसे जैसाका तैसा कर दिया। बादमें वह घर आया और अपनी स्त्रीकी इच्छापूर्तिके लिये निरंतर वह चांडाल विद्याके बलसे वहाँसे आम लाने लगा। एक दिन फिरते-फिरते मालीकी दृष्टि आम्रवृक्षकी ओर गयी। आमोंकी चोरी हुई देखकर उसने जाकर श्रेणिक राजाके सामने नम्रतापूर्वक कहा । श्रेणिककी आज्ञासे अभयकुमार नामके बुद्धिशाली मंत्रीने युक्तिसे उस चांडालको खोज निकाला। चांडालको अपने सामने बुलाकर पूछा, "इतने सारे मनुष्य बागमें रहते हैं, फिर भी तू किस तरह चढकर आम ले गया कि यह बात किसीके भाँपनेमें भी न आयी? सो कह।" चांडालने कहा, "आप मेरा अपराध क्षमा करे। मैं सच कह देता हूँ कि मेरे पास एक विद्या है, उसके प्रभावसे मैं उन आमोंको ले सका।" अभयकुमारने कहा, "मुझसे तो क्षमा नहीं दी जा सकती; परंतु महाराजा श्रेणिकको तू यह विद्या दे तो उन्हें ऐसी विद्या लेनेकी अभिलाषा होनेसे तेरे उपकारके बदले में मैं अपराध क्षमा करा सकता हूँ।" चांडालने वैसा करना स्वीकार किया। फिर अभयकुमारने चांडालको जहाँ श्रेणिक राजा सिंहासनपर बैठा था वहाँ लाकर सामने खडा रखा; और सारी बात राजाको कह सुनायी। इस बातको राजाने स्वीकार किया। फिर चांडाल सामने खडे रहकर थरथराते पैरोंसे श्रेणिकको उस विद्याका बोध देने लगा; परंतु वह बोध लगा नहीं। तुरन्त खडे होकर अभयकुमार बोले, “महाराज ! आपको यदि यह विद्या अवश्य सीखनी हो तो सामने आकर खडे रहें, और इसे सिंहासन दें।" राजाने विद्या लेनेके लिये वैसा किया तो तत्काल विद्या सिद्ध हो गयी।
SR No.009959
Book TitleDrusthant Katha
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size17 MB
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