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________________ १९०] पञ्चमो वग्गो दीवे महाविदेहे वासे उन्नाए नगरे विसुद्धपिइवसे रायकुले पुत्तत्ताए पच्चायाहिइ । तए णं से उम्मुक्कबालभावे विनयपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते तहारूवाणं थेराणं आन्तिए केवलबोहिं बुज्झित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वजिहिइ । से णं तत्थ अणगारे भविस्सइ इरियासमिए जाव गुत्तबम्भयारी। से णं तत्थ बहूई चउत्थछट्टमदसमदुवालसेहि मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणिस्सइ । २ मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसिहिइ, २ सर्टि भत्ताइं अणसणाए छेइहिइ, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुण्डभावे अण्हाणए जाव अदन्तवणए अच्छत्तए अणोवाहणाए फलहसेजा कट्ठसेज्जा केसलोए बम्भचेरवासे परघरपवेसे पिण्डवाउलद्धावलद्धे उच्चावया य गामकण्टगा अहियासिजइ, तमढें आराहेइ।२चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाणं अन्तं काहिइ" ॥१८९ ॥ ॥ निक्खेवओ ॥ ५। १॥ एवं सेसा वि एक्कारस अज्झयणा नेयव्वा संगहणीअणुसारेण अहीणमइरित्त एक्कारससु वि ॥ १९०॥ ॥पञ्चमो वग्गो सम्मत्तो॥५॥ १A omits पिण्डवाउ
SR No.009958
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorP L Vaidya
PublisherP L Vaidya
Publication Year
Total Pages218
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size29 MB
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