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________________ कि, '(हे व्याघ्र), तुम पुनरपि 'मूषक' बन जाओ', यह कहकर मुनि ने वैसा ही किया (इस प्रकार मूषक फिर से मूषक' ही बन गया ।) तात्पर्य : हर एक दयालु व्यक्ति मन से दूसरे का भला करना चाहता है । लेकिन किसी का भला करने से पहले यह भी सोचना चाहिए कि, वह उसके लायक है भी या नहीं । पात्रता देखे बिना की हुई दया बूमरँग की तरह खुदपर ही उलट जाती है । कृतघ्नता' बहुत ही बडा दुर्गुण है। स्वाध्याय प्रश्न १ : निम्नलिखित नामविभक्ति के रूप पहचानिए । गोयमस्स, तवोवणे, वग्धं, वायसेण, कुक्कुराओ प्रश्न २ : इस पाठ में आये हए 'ऊण' प्रत्ययान्त पूर्वकालवाचक धातुसाधित अव्यय लिखिए । प्रश्न ३ : 'कुत्ता' और 'बिल्ली' इस अर्थ में प्रस्तुत पाठ में आये हुए दो-दो प्राकृत शब्द लिखिए । ********** 56
SR No.009956
Book TitleJainology Parichaya 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2013
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size304 KB
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