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________________ २६) धर्मार्थाविरोधेन काम सेवेत ततः सुखी स्यात् । अर्थ : सामान्य गृहस्थ के लिए चाहिए कि वह धर्म और अर्थ को बाधक न ठरे इस प्रकार काम का सेवन करें ताकि उसे सुख की प्राप्ति हो। भावार्थ : सोमदेव के इस सूत्र पर कौटिल्य द्वारा रचित सूत्र की छाया स्पष्टत: से दिखायी देती है। धर्म और अर्थ के समान कामपुरुषार्थ का भी महत्त्व सामान्य व्यक्ति के लिए अनन्यसाधारण है। अगर जीवन में तनिक भी सुख न हो तो भला कौन जीना चाहेगा । लेकिन नैतिक दृष्टि से यह ध्यान में रखना चाहिए कि वैयक्तिक सुख की अभिलाषा में, धर्माचरण और अर्थ का विनाश न हो। २७) समं वा त्रिवर्ग सेवेत । अर्थ : अथवा धर्म-अर्थ-काम इन तीन पुरुषार्थों का समभाग से सेवन करें। भावार्थ : सोमदेव का आशय है कि इन तीनों में समतोल रखना बहुत ही दुःसाध्य चीज है । धर्म का अतिरेक हो तो अर्थ-काम की हानि होगी । सदैव अर्थप्राप्ति की चिन्ता में डूबे तो धर्म से और सुख से वन्चित रहेंगे और अगर कामपुरुषार्थ की मात्रा अतिरिक्त हई तो अर्थविनाश के साथ-साथ ऐहिकपारलौकिक अकल्याण भी होगा । अत: तीनों पुरुषार्थों का विवेकपूर्वक सेवन कोई आसान बात नहीं है। २८) न अजितेन्द्रियाणां कापि कार्यसिद्धिः अस्ति । अर्थ : अगर इन्द्रियों पर काबू न रखे तो किसी भी प्रकार की कार्यसिद्धि नहीं हो सकती। भावार्थ : सोमदेव का कहना है कि 'इन्द्रियजय की आवश्यकता सिर्फ आध्यात्मिक क्षेत्र में ही है', यह बात सत्य नहीं है । सामान्य जीवन जीने के लिए भी इन्द्रियों पर काबू रखने की नितान्त आवश्यकता है । नीतिवाक्यामृत ग्रन्थ में राजा, अमात्य, मन्त्री, श्रेष्ठी और सामान्य नागरिक सबके लिए जितेन्द्रिय होने की आवश्यकता बतायी है। अगर इन्द्रियों के लगाम छूट गये तो धर्म, अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थों की हानि ही होगी। २९) अर्थशास्त्राध्ययनं वा ।। अर्थ : राष्ट्र के अथवा राज्य के हरएक नागरिक घटक को चाहिए कि, वह ‘अर्थशास्त्र' का अध्ययन करें । भावार्थ : यहा 'अर्थशास्त्र' का मतलब है संविधान, शासन-व्यवहार, राजनीति, कर-प्रणालि, अपराध और दण्डव्यवस्था एवं आर्थिक व्यवहार । हर सजग नागरिक का कर्तव्य है कि वह उपरि निर्दिष्ट वस्तुस्थिति को समझ ले और जानबूझकर दक्षता से व्यवहार करें । ३०) न तस्य धनं धर्मः शरीरं वा यस्य अस्ति स्त्रीषु अत्यासवितः । अर्थ : जिस पुरुष के मन में स्त्रियों के प्रति अतीव अभिलाषा है उसकी धनहानि, धर्महानि और शारीरिक हानि भी होती है। भावार्थ : यद्यपि इस सूत्र में स्त्रीविषयक आसक्ति का उल्लेख है तथापि सोमदेव चाहते हैं कि स्त्री और पुरुष दोनों काम का सेवन मर्यादा में रहकर ही करें । सोमदेव दसवीं शताब्दि के होने के बावजूद भी 'एकपत्नीव्रत' और 'एकपतिव्रत' का पुरस्कार करते हैं ।
SR No.009956
Book TitleJainology Parichaya 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2013
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size304 KB
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