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________________ समिति-धर्म- अनुप्रेक्षा- परीषहजय और चारित्र से होता है। तीन प्रकार की गुप्ति - पाँच प्रकार की समिति - दशविध धर्म - बारह प्रकार की अनुप्रेक्षा और बाईस प्रकार के परीषहों का अध्ययन हमने पहले ही किया है। उन सबकी व्याख्या और प्रकार इस अध्याय के सूत्रों में निहित है । यहाँ चारित्र पाँच प्रकार का बताया है। वे पाँच प्रकार आत्मिक शुद्धि पर आधारित हैं। संवर के उपायों में 'तप' का महत्त्व अनन्यसाधारण है । उससे दोहरा लाभ होता है । तप के कारण नूतन आस्रवों को रोक लगता है । साथ ही पूर्वकृत कर्मों की निर्जरा भी होती है । तप के अन्तरंग और बाह्य भेदों के बारे में हम पहले ही जान चुके हैं। इस अध्याय के २७ वे सूत्र से लेकर ४६ वे सूत्र तक, चार प्रकार के ध्यानों का विस्तृत वर्णन है । आगे के सूत्र में ‘गुणश्रेणि' का सिद्धान्त और उसमें होनेवाली कमनिर्जरा का तरतम भाव बताया है । अन्तिम दो सूत्रों में निर्ग्रन्थों के पाँच प्रकार और उनकी विशेषतायें बतायी हैं । सारांश में हम कह सकते हैं कि संवर और निर्जरा पर आधारित यह अध्याय साधु के आचार पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालता है। गुणस्थानों का संक्षिप्त वर्णन और ध्यान की प्रक्रिया का वर्णन इस अध्याय की विशेषता है । अध्याय १० : मोक्ष जैनधर्म ने हमेशा 'मोक्ष' या 'निर्वाण' को ही मानवी जीवन का सर्वोच्च ध्येय माना है। संवर और निर्जरा उसके उपाय हैं। अतः तत्त्वार्थसूत्र के अन्तिम अध्याय में 'मोक्ष' का स्वरूप बताया है । आठ में से चार कर्म अघातिकर्म हैं। मोहनीय, ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा अन्तराय ये चार घातिकर्म हैं । चारित्रपालन के अन्तिम पडाव पर आठों कर्मों का क्षय होता है । तत्त्वार्थ के द्वितीय अध्याय में आत्मा के जो पाँच भाव बताये हैं उनमें से चार भावों का क्षय मोक्षावस्था में होता है। पारिणामिक भाव शेष रहते हैं । याने की मुक्त आत्मा का भी जीवत्व और अस्तित्व आदि कायम रहता है । कर्मक्षय के बाद मुक्त T जीव तुरन्त ही लोक के अन्त तक उपर जाता है । सिद्धशीला पर मुक्त जीव हमेशा स्थित रहते हैं । किसी भी अवस्था में संसार में वापस नहीं आते । इस अध्याय के अन्तिम सूत्र में बारह मुद्दों के आधार से सिद्धों की विशेषताओं का विचार किया है । इस प्रकार मोक्ष की प्रक्रिया और मुक्त जीवों का वर्णन इस अध्याय का मुख्य प्रतिपाद्य है । अ) वस्तुनिष्ठ प्रश्न १) तत्त्वार्थसूत्र के रचयिता कौन है ? स्वाध्याय २) तत्त्वार्थसूत्र का पूरा नाम क्या है ? ३) तत्त्वार्थसूत्र कौनसी भाषा में लिखा है ? ४) पाँच प्रकार के ज्ञानों का वर्णन तत्त्वार्थ के कौनसे अध्याय में है ? उनके नाम लिखिए । ५) तत्त्वार्थ के दूसरे अध्याय में सात तत्त्वों में से कौनसे तत्त्व का विस्तृत वर्णन पाया जाता है ? ६) जीव के पाँच भेद कौनसे हैं ? ७) संज्ञी और असंज्ञी का मतलब क कया है ? ८) पुनर्जन्मविषयक विचार तत्त्वार्थ के कौनसे अध्याय में बताए हैं ? ९) जैन परम्परा में पाँच प्रकार के शरीर कौनसे हैं ? 20
SR No.009956
Book TitleJainology Parichaya 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2013
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size304 KB
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