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________________ (२) द्वितीया विभक्ति : (Accusative) कर्मकारक (यहाँ वाक्य का 'कर्म' द्वितीया विभक्ति में है ।) १) भत्तो रामं पूएइ । भक्त राम को पूजता है । २) सीहो मिगे भक्खइ । सिंह मृगों को खाता है । (३) तृतीया विभक्ति : (Instrumental) करणकारक (यहाँ क्रिया का ‘साधन' तृतीया विभक्ति में है ।) १) विज्जा विणएण सोहइ । विद्या विनयेन शोभते । २) सुलसा नेत्तेहिं पासइ । सुलसा नेत्रोंद्वारा देखती है । ४) पंचमी विभक्ति : (Ablative) अपादानकारक (चीज जिस स्थल से दूर जाती है, उस स्थल की विभक्ति पंचमी' है ।) १) जणा सीहाओ बीहंति । लोग सिंह से डरते हैं। २) तित्थयरेहिंतो लोगा धम्मं जाणिंसु । तीर्थंकरों से लोगों ने धर्म जाना । (५) षष्ठी विभक्ति : (Genitive) सम्बन्धकारक (दो व्यक्ति या चीजों का सम्बन्ध' षष्ठी विभक्ति से सूचित होता है ।) १) सिद्धत्थो खत्तिओ समणस्स महावीरस्स जणओ आसि । सिद्धार्थ क्षत्रिय श्रमण महावीर के जनक थे । २) सीलं नराणं भूसणं । शील मनुष्यों का भूषण है ।
SR No.009955
Book TitleJainology Parichaya 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2012
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size254 KB
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