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________________ कर्तव्य है कि वह किसी प्राणी के प्राणों का अतिपात (वध) न करें । सभी पाप प्रवृत्तियों से दूर रहनेवाले धार्मिक प्रवृत्तिवाले व्यक्ति के लिए गाथा की दूसरी पंक्ति में एक उदाहरण प्रयुक्त किया है । कितना भी पानी ऊपर से गिरे, ऊँचे स्थान से जिस प्रकार पानी बहकर निकल ही जाता है, उसी प्रकार समित होने के कारण उस व्यक्ति में कर्मऔर कर्मबंध नहीं ठहरते । उससे अलग हो जाते हैं । (९) सव्वो हि जहायासे --- __ जैनधर्म में अहिंसा तत्त्व समग्र जैन आचारशास्त्र की आधारशिला है । जैन दृष्टि से आचार दो प्रकार का है - साधुआचार और श्रावकाचार । दोनों अलग-अलग कहने के बदले यहाँ तीन प्रातिनिधिक शब्दों का प्रयोग किया है । 'व्रत' शब्द से हम महाव्रत या अणुव्रत ले सकते हैं । 'गुण' शब्द साधु के गुण अथवा श्रावक के गुणव्रत - इनदोनों अर्थों से ले सकते हैं । 'शील' शब्द तो सामान्यत: संयम के आचार का वाचक है । प्रस्तुत गाथा में कहा है कि व्रत, गुण और शीलरूप आचार, अहिंसा की संकल्पना पर ही दृढ रूप से प्रतिष्ठित __ अहिंसा का महत्त्व समझाने के लिए आकाश और भूमि का उदाहरण दिया है । जैनशास्त्र के अनुसार आकाश ही ऊर्ध्व, अधो और मध्यलोक को अवकाश देता है । यह अवकाश ही त्रैलोक्य का आधार है । भूमि की बत थोडी अलग है । भूमि, सभी द्वीप और समुद्रों को प्रत्यक्षत: आधार देती है । भूमि और आकाश के दृष्टांत देने के पीछे अहिंसाव्रत की विशालता और समग्रता भी आचार्यश्री के मन में अवश्य है। (१०) तसपाणे वियाणेत्ता --- प्रस्तुत गाथा में ब्राह्मण का लक्षण बताया है । 'ब्राह्मण' शब्द की नयी परिभाषा प्रस्तुत करने से जाहीर है कि जन्माधार जातिव्यवस्था जैनशास्त्र को सम्मत नहीं है । गुण और वर्तन के आधार से ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार शब्दों की परिभाषा की है। ब्राह्मण का लक्षण देते हुए यहाँ अहिंसा को प्राधान्य दिया है । कहा है कि - ‘जो त्रस और स्थावर जीवों को सम्यक् प्रकार से जानकर उनकी मन,वचन और काया से हिंसा नहीं करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।' 'ब्राह्मण' शब्द के लिए प्राकृत शब्द 'माहण' है । माहण शब्द की उत्पत्ति इस प्रकार दी जाती है - मा+हण याने 'किसी को मत मारो' - ऐसा जो कहता है वही ब्राह्मण है । स्वाध्याय-७ १) 'सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउंन मरिज्जिउं ।' स्पष्ट कीजिए । (तीन-चार वाक्य) (गाथा १ भावार्थ) २) त्रस और स्थावरों के प्रति किस प्रकार अहिंसा का आचरण करना अपेक्षित है ? (तीन-चार वाक्य) (गाथा ३ भावार्थ) ३) अयतनापूर्वक वर्तन क्यों नहीं करना चाहिए ? (दो-तीन वाक्य) (गाथा ४ भावार्थ) ४) अप्रमत्त और दयाशील व्यक्ति अहिंसक है।' - स्पष्ट कीजिए । (तीन-चार वाक्य) (गाथा ५ अर्थ, भावार्थ) ५) 'विषकंटक के समान हिंसा टालनी चाहिए' - स्पष्ट कीजिए । (पाँच-छह वाक्य) (गाथा ६ भावार्थ) ६) हिंसारहित और हिंसासहित धर्म के बारे में, देव-गुरूण णिमित्त' इस गाथा में क्या कहा है ? (दो-तीन वाक्य) (गाथा ७ भावार्थ)
SR No.009953
Book TitleJainology Parichaya 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Joshi
PublisherSanmati Tirth Prakashan Pune
Publication Year2010
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size275 KB
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