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________________ स्त्रीरागकथाश्रवणतन्मनोहरांगनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मर णवृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागा:पञ्च।।७।। स्त्रियों में प्रीति उत्पन्न करने वाली कथाओं को नहीं सुनना उनके मनोहर अंगों को राग सहित नहीं देखना, पूर्वकाल में किये हुए विषयभोगों का स्मरण नहीं करना, कामोद्दीपक रसों का त्याग और शरीर को श्रृंगार युक्त करने का त्याग ये पाँच ब्रह्मचर्य व्रत की भावनाएँ हैं। मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेष वर्जनानि पंच।।८।। पाँचों इन्द्रियों के इष्ट व अनिष्ट रूप स्पर्शरसादिक पाँचों विषयों में राग द्वेष का त्याग करना परिग्रह व्रत की पाँच भावनाए हैं। हिंसादिष्वहामुत्रापायावद्यदर्शनम्।।९।। हिंसादि पाँच पापों के करने से इस लोक में आपत्ति और परलोक में छेदन भेदनादि कष्ट सहन करने पड़ते हैं। दुःखमेव वा।।१०॥ अथवा हिंसादि पाँच पाप दु:ख रूप ही हैं। मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यानि च सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनयेषु ।।११।। सर्व जीवों के साथ मित्रता, गुणाधिकों के साथ प्रमोद, दुःखियों के ऊपर करुणा बुद्धि और अविनयी जीवों पर माध्यस्थ्य भाव रखना चाहिए। जगत्कायस्वभावौ वा संवेग वैराग्यार्थम् ।।१२।।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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