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________________ हिंसाऽनृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहेभ्यो विरतिव्रतम्।। ।। हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह इनसे बुद्धि पूर्वक विरक्त होना व्रत है। देशसर्वतोऽणुमहती।।२।। इन पाँचों पापों का एक देश त्याग करना अणुव्रत है तथा मन, वचन, काय और कृत, कारित अनुमोदना से सर्वथा त्याग कर देना महाव्रत है। तत्स्थै र्यार्थभावना:पञ्च ।।३।। इन व्रतों को स्थिर रखने के लिए प्रत्येक व्रत की पाँच पाँच भावनाएँ हैं। वाङ्गमनोगुप्तीर्यादाननिक्षेपणसमित्यालोकितपान भोजनानि पंच।४॥ वचन गुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपण समिति और आलोकित पान भोजन (देखशोध कर भोजन करना) ये पाँच अहिंसा व्रत की भावनाएँ हैं। क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचिभाषणं च पंच।।५।। क्रोध, लोभ, भय और हास्य का त्याग तथा सूत्र के अनुसार निर्दोष वचन ये पाँच सत्यव्रत की भावनाएँ हैं। शून्यागारविमोचितावासपरोधाकरण भैक्ष्यशुद्धिसधर्माबिसंवादा: पंच।।६।। खाली घर में रहना, किसी के छोड़े हुए स्थान में रहना, अन्य को रोकना नहीं, शास्त्र विहित भिक्षा की विधि में न्यूनाधिक नहीं करना और साधर्मी भाइयों से विसंवाद नहीं करना ये पाँच अचौर्य व्रत की भावनाएं हैं।
SR No.009950
Book TitleTattvartha Sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages63
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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