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________________ तृतीय खण्ड। - [६६ ' . २८ अदत्तग्रहण-यदि साधु विना दातारके दिये हुए अप नेसे अन्नादि ले लेवे तो अन्तराय करे । - २९ प्रहार-यदि भोजन करते हुए साधुको कोई खडग लाठी आदिसे मारे या साधुके निकट कोई किसीको प्रहार करे तो साधु 'अन्तराय करें। ३०-ग्रामदाह-यदि ग्राममें अग्नि लग जावे तो साधु भोजन न करें। . ३१ पादकिंचित्ग्रहण-यदि साधु पादसे किसी वस्तुको उठा लें तो अन्तराय करें। ३२ करग्रहण--यदि साधु हाथसे. भूमिपरसे कोई वस्तु उठा लें तो भोजन तनें। ये ३२ अंतराय प्रसिद्ध हैं इनके सिवाय इनहीके तुल्य और भी कारण मिलें तो साधु इस समयसे फिर उस दिन भोजन न करें। जैसे मार्गमें चंडाल आदिसे स्पर्श हो जावे, कहीं उस ग्राममें युद्ध होजावे या कलह घरमें होनावे जहां भोजनको जावे, मुख्य किसी इष्टका मरण होजावे, किसी, प्रधानका मरण. होजावे व किसी साधुका समाधिमरण होनावे, कोई राजा मंत्री आदिसे उपद्रवका . भय होजावे, लोगोंमें अपनी निन्दा होती हो, या भोजनके गृहमें अकस्मात् कोई उपद्रव होजावे, भोजनके समय मौन छोड दे-बोल उठे, इत्यादि कारणोंके होनेपर साधुको संयमकी सिद्धिके लिये व 'वैराग्यभावके दृढ़ करनेके लिये आहारका त्याग कर देना चाहिये। · साधुको उचित है कि द्रव्य क्षेत्र, बल, काल, भावको देखकर अपने खास्थ्यकी रक्षार्थ भोजन करें। इस तरह जो साधु
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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