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________________ ५८] श्रीप्रवचनसारटोका। तव उसको उसके मनके अनुकूल कह देना कि पुण्य है और इस निमित्तसे भोजन प्राप्त करना सो दोष है । यदि अपने भोजनकी अपेक्षा न हो और उसको शास्त्रका मार्ग समझा दिया जाय कि इनको दान करनेसे पात्रदान नहीं होसक्ता, मात्र दया दान होसक्ता है। जब ये भूखसे पीड़ित हों और उनको दयाभावसे योग्य भक्ष्य पदार्थ मात्र दिया जावे तब यह दोष न होगा ऐसा भाव झलकता है। ६ चिकित्सा दोष-आठ प्रकार वैद्यशास्त्रके द्वारा दातारका उपकार करके जो आहारादि ग्रहण किया जाय सो पात्रके लिये चिकित्सा दोष है-आठ प्रकार चिकित्सा यह है १ कौमार चिकित्सा-बालकोंके रोगोंके दूर करनेका शास्त्र । २ तनु चिकित्सा- शरीरके ज्वर कास श्वास दूर करनेका शास्त्र ३ रसायन चिकित्सा-अनेक प्रकार रसोंके बनानेका शास्त्रं । ४ विष चिकित्सा-विषको फूककर औषधि बनानेका शास्त्र ५ भूत चिकित्सा-भूत पिशाचको हटानेका शास्त्र । ६ क्षारतंत्र चिकित्सा-फोड़ाफूसी कादि मेटनेका शास्त्र । ७ शालाकिक चिकित्सा-सलाईसे जो इलाज हो जैसे आखोंका पटल खोलना आदि उसके बतानेका शास्त्र । ८ शल्य चिकित्सा कांटा निकालने व हड्डी सुधारनेका शास्त्र ७ क्रोध दोष-दातारपर क्रोध करके भिक्षा लेना। ८ मानदोष-अपना अभिमान वताकर भिक्षा लेना। ९ माया दोष-मायाचारीसे, कपटसे भिक्षा लेना। १० लोभ दोष-लोम दिखाकर मिक्षा- लेना ।
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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