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________________ तृतीय खण्ड। [३४६ रहित स्फाटिकके समान सर्व रागद्वेषादि विकल्पोंकी उपाधिसे रहित है । वही आत्मा अशुद्ध निश्चय नयकी अपेक्षा उपाधि सहित स्फटिकके समान सर्व रागद्वेषादि विकल्पोंकी उपाधि सहित है, वही आत्मा शुद्धसभूत व्यवहार नयसे शुद्ध स्पर्श, रस, गंध, वर्णाका आधारभूत पुद्गल परमाणुके समान केवलज्ञानादि शुद्ध गुणोंका आधारभूत है, वही आत्मा अशुद्ध सद्भूत व्यवहार नयसे अशुद्ध स्पर्श, रस, गंध, वर्णका आधारभूत दो अणु तीन अणु आदि परमाणुओंके अनेक स्कंधोंकी तरह मतिज्ञान आदि विभाव गुणोंका आधारभूत है । वही आत्मा अनुप चरित असद्भूत व्यवहारनयसे द्वणुक आदि स्कंधोंके सम्बन्धरूप बंधमें स्थित पुद्गल परमाणुकी तरह अथवा परमौदारिक शरीरमें वीतराग पर्वज्ञकी तरह किसी खास एक शरीरमें स्थित है । (नोट-आत्माको कार्माण शरीरमें या तैजस शरीरमें स्थित कहना भी अनुपचरित असदभूत व्यवहारनयसे है ) । तथा वही आत्मा उपचरित असदभूत व्यवहारनयसे काष्ठके आसन आदिपर बैठे हुए देवदत्तके समान व समवशरणमें स्थित वीतराग सर्वज्ञके समान किसी विशेष ग्राम ग्रह आदिमें स्थित है | इत्यादि परस्पर अपेक्षारूप अनेक नोंके द्वारा जाना हुआ या व्यवहार किया हुआ यह आत्मा क्रमक्रमसे विचित्रता रहित एक किसी विशेष स्वभावमें व्यापक होनेकी अपेक्षासे एक स्वभावरूप है । वही जीव द्रव्य प्रमाणकी दृष्टि से जाना हुआ विचित्र स्वभावरूप अनेक धर्मोमें एक ही काल चित्रपटके समान व्यापक होनेसे अनेक स्वभाव खरूप है । इस तरह नय प्रमाणोंके द्वारा तत्वके विचारके समयमें जो कोई परमात्म द्रव्यको
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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