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________________ २२२ ] श्रीप्रवचनसारटोका। नकुल, सहदेवके मनमें यह राग उपज आयां कि हमारे भाई दुःखसे पीड़ित हैं । इस जरासे राग भावके कारण वे दोनों मुक्ति न पहुंचकर सर्वार्थसिद्धिमें गए । इसलिये परम वैराग्य ही सिद्धिका कारण है, न कि केवल शास्त्रज्ञान ॥ ५९॥ ___ उत्थानिका-आगे द्रव्य तथा भाव संयमका स्वरूप बताते हैंचागो य अणारंभो विसयविरागो खओ कसायाणं । सो संजमोत्ति भणिदो पव्वज्जाए विसेसेण ॥ ६० ।। त्यांगश्च निरारंभी विषयविरागः क्षयः कषायाणां । स संयमेति भणितःप्रवृज्यायां विशेषेण ॥ १० ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थ-(चागो य) त्याग और (अणारंभो) व्यापार रहितपना (विसयविरागों) विषयोंसे वैराग्य (कसायाणं खओ) कषायोंका क्षय है (सो संजमोत्ति मणिदो)वही संयम है ऐसा कहा गया है । (पव्वजाए) तपके समय (विसेसेण) वह संयम विशेषतासे होता है। विशेषार्थ-निन शुद्धात्माके ग्रहणके सिवाय बाहरी और भीतरी २४ प्रकारकी परिग्रहका त्याग सो त्यांग है.। क्रिया रहित अपने शुद्ध आत्म द्रव्यमें ठहरकर मन वचन कायके व्यापारोंसे छूट जाना सो अनारम्भ है । इंद्रिय विषय रहित अपने आत्माकी भावनासे उत्पन्न सुखमें तृप्ति रख करके. पंचेन्द्रियोंके सुखोंकी इच्छाका त्याग सो विषय विराग है । कषायं रहित निज शुहा• त्माकी भावनाके बलसे क्रोधादि कषायोंका त्याग सो कषाय क्षय है। इन गुणोंसे संयुक्तपना, जो होता है सो संयम है ऐसा कहा गया, है। सामान्य करके यह संयमका लक्षण है। तपश्चरणकी अवस्थामें
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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