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________________ २१४ ] श्रीप्रवचनसारटीका। परमात्मा अवस्था या मोक्षअवस्था ऐसी तीन अवस्थाएं जीवकी होती हैं-इन तीनों अवस्थाओंमें जीव द्रव्य वरावर चला जाता है। इस तरह परस्पर अपेक्षासहित द्रव्यपर्यायरूप जीव पदार्थको जानना चाहिये। अब यहां मोक्षका कारण विचारा जाता है। मिथ्यात्व रागादि रूप जो बहिरात्मा अवस्था है वह तो अशुद्ध है इसलिये मोक्षका कारण नहीं होसक्ती है | मोक्षावस्था तो शुद्धात्मा रूप अर्थात फलरूप है जोकि सबसे उत्कृष्ठ है। इन दोनों वहिरात्मावस्था और मोक्षावस्थासे भिन्न जो अंतरात्मावस्था है वह मिथ्यात्व रागादिसे रहित होनेके कारणसे शुद्ध है । जैसे सूक्ष्म निगोदिया जीवके ज्ञानमें और ज्ञानावरणीयका आवरण होनेपर भी . क्षयोपशम ज्ञानका सर्वथा आवरण नहीं है तैसे इस अन्तरात्मा अवस्थामें केवलज्ञानावरणके होते हुए भी एक देश क्षयोपशम ज्ञानकी अपेक्षा आवरण नहीं है । जितने अंशमें क्षयोपशम ज्ञानावरणसे रहित होकर तथा रागादि भावोंसे रहित होकर शुद्ध है उतने अंशमें वह अंतरात्माका वैराग्य और ज्ञान मोक्षका कारण है। इस अवस्थामें शुद्ध पारिणामिक-भाव स्वरूप जो परमात्मा द्रव्य है वह तो ध्यान करनेके योग्य है । सो परमात्मा द्रव्य उस अंतरात्मापनेकी ध्यानकी अवस्था विशेषसे किसी अपेक्षा भिन्न है । यदि एकांतसे अंतरात्मावस्था और परमात्मावस्थाको अभिन्न या. अभेद माना जायगा तो मोक्षमें भी ध्यान प्राप्त होजायगा अथवा इस ध्यान पर्यायके विनाश होते हुए पारणामिक भावका भी विनाश होजायगा, सो हो नहीं सक्ता । इस तरह बहिरात्मा, अंतरात्मा तथा परमात्माके कथन रूपसे मोक्षमार्ग जानना चाहिये ।
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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