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________________ २२] श्रीप्रसार है | चारित्र चलानेवाला है। रको तिर जाते हैं। जैसे माना है ध्यानीमायकी तीनों की सहायता से भव्य जीव संसारा साम लानेवाले नाविकके बिना नवसमुद्र ठीक नहीं चल सक्तीप्रऔन इति पचानक सकती हैं नाचिकका होगा जैसे नमत्यन्त जी ही गमज्ञनिकी‍ आवश्यक्ता है कि विर्ता इसके मोक्षमार्गको दिख ही नहीं संतति चलेगा कि सेवा महुंचेगा जैसे केवलज्ञानकी प्राप्तिका साक्षात् कारण स्वात्मानुभवसिद जाना है और संवेदन की कारण शास्त्रोको प्रथा शनि है लिये ज्ञानके बिना मोक्षमार्गका लामा होमािं उत्थानिक जागे है कि अगमके ही चनसे सं पाि दिखता है सच्चे "आगमसिद्धा अस्था गुणस्तरहि चित्तहिनः । आगमण पछितावित सामाि संगीसिद्ध अर्थमुवाच मम । काक जानन्त्यागमेन हि दृष्ट्वा तानपि ते श्रमणाः सामा हो नाना प्रकार गण पर्यायों के साथ कसको सत्या ( आगमसिद्धा) कायमसे जाने जाते हैं मा द्वारा (हि) निःश्य से (वि) सिनं सर्वको (जाति) जो जानते हैं (ते' समोगा) के सा गुण पजएराहे ) सर्व पदार्थ आगमेणासाग(पति) समझकर विशेषार्थ - विशुद्ध ज्ञान दर्शना स्वभावधारी परमात्मं पदार्थको परिमा लेकर सर्वन्हीं मदार्थ तथा उनके सर्वत्र और
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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