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________________ w २००] श्रीप्रवचनसारटोका। ___ अन्वय सहित सामान्यार्थः-(साहू) साधु महाराज (आगमचक्खू) आगमके नेत्रसे देखनेवाले हैं (सव्वभूदाणि) सर्व संसारी जीव (इंदियचक्खूणि) इंद्रियोंके द्वारा जाननेवाले हैं (देवा य ओहि चक्खू) और देवगण अवधिज्ञानसे जाननेवाले हैं (पुण) परन्तु (सिद्धा सव्वदो चक्खू ) सिद्ध भगवान सब तरफसे सब देखनेवाले हैं। विशेषार्थ:-निश्चय रत्नत्रयके आधारसें निज शुद्धात्माके साधनेवाले साधुगण शुद्धात्मा आदि पदार्थोंका समझानेवाला जो परमागम है उसकी दृष्टि से देखनेवाले होते हैं। सर्व संसारी जीव सामान्यसे निश्चयनयसे यद्यपि अतीन्द्रिय और अमूर्त केवलज्ञानादि गुण स्वरूप हैं तथापि व्यवहार नयसे अनादि कर्मबंधके वशसे इंद्रियाधीन होनेके कारणसे इंद्रियोंके द्वारा जाननेवाले होते हैं। चार प्रकारके देव सूक्ष्म मूर्तीक पुद्गल द्रव्यको जाननेवाले अवविज्ञानके द्वारा देखनेवाले होते हैं परन्तु सिद्ध भगवान शुद्ध बुद्ध एक स्वभावमई जो अपने जीव अनीवसे भरे हुए लोकाकाशके प्रमाण शुद्ध असंख्यात प्रदेश-उन सर्व प्रदेशोंसे देखनेवाले हैं इससे यह बात कही गई है कि सर्व शुद्धात्माके प्रदेशोंमें देखनेकी योग्यताकी उत्पत्तिके लिये मोक्षार्थी पुरुषोंको उस स्वसंवेदन ज्ञानकी ही भावना करनी योग्य है जो निर्विकार है और परमागमके उपदेशसे उत्पन्न होता है। ____ भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने साधुको चारित्र पालनके लिये आगम ज्ञानकी और भी आवश्यक्ता बता दी है और यह बता दिया है कि यद्यपि साधुके सामान्य मनुष्योंकी तरह इंद्रियां हैं और मन है, परन्तु उनसे वह ज्ञान नहीं होसक्ता जिसकी आवश्यक्ता
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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