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________________ २] श्रीप्रवचनसारटोका | . सोमन्धरको आदि ले, वर्तमान भगवान । दश दो विहर विदेहमें, धर्म' करावत पान ॥ ६ ॥ तिनको नमन करू' सरुचि, श्रुतकेवलि उर ध्याय । भद्रबाहु अन्तिम भरा, वंदूं मन हुलसाय ॥ ७ ॥ तिनके शिष्य परम भए, चन्द्रगुप्त सम्राट । दीक्षा धर साधू हुए, भाव परिग्रह काट ॥ ८ ॥ अध्यात्म | पाया शांतकर आत्म ॥ ६ ॥ वारस्वार । नहिं जाय ॥ १२ ॥ वंदूं ध्याऊं साधु वहु जिन एक तान निज ध्यानमें, हुए कुन्दकुन्द मुनि राजको, ध्याऊं योगीश्वर ध्यानी महा, ज्ञानी परम दयावान उपकार कर, सम्मारग मोह ध्वांत नाशक परम, सुखमय ग्रन्थ निज आतम रस पानकर अन्य जीव जैसा उद्यम मुनि किया, कथन करो प्रवचनसार महान यह, परमागम गुण खान । 'प्राकृत भाषामें रच्यो, संत्र जीवन हिन जान ॥ १३ ॥ इनपर वृत्ति संस्कृत, अमृतचन्द् करो उसीके भावको, हिन्दी लिख हेमोश ॥ १४ ॥ द्वितीयवृत्ति जयसेनकृत, अनुभव रससे पूर्ण । बालबोध हिन्दी नहीं, लिखी कोय इम लख हम उद्यम किया, हिंन्दी हित निज मति सम यह दीपिका, उद्योतो हुलसाय ॥ १६ ॥ तृतीय खण्ड चारित्रको वर्णन बहु हितकार । पाठकगण रुचि घर पढ़ो, पालो शक्ति सम्हार ॥ १७ ॥ मुनोश | उदार ॥ १० ॥ दर्शाय । वनाय ॥ ११ ॥ पिलवाय । अधचूर्ण ॥ १५ ॥ उर भाय |
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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