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________________ १४४] श्रीप्रवचनसारटोका। पनेको नहीं पावेगा-अथवा कोई व्यवहार आलम्बो साधु आहार . पानका लोलुपी होकर अपवाद मार्गकी बिलकुल परवाह न करे तौ ऐसा साधु भी साधुपनेके फलको नहीं प्राप्त कर सकेगा, किन्तु महान कर्मका बंध करनेवाला होगा। इससे साधुको उत्सर्ग मार्ग सेवते हुए अपवादकी शरण व अपवाद मार्ग सेवते हुए निश्चय या उत्सर्गकी शरण लेते रहना चाहिये-किसी एक मार्गका हठ न करना चाहिये। जब साधु क्षपक श्रेणीपर चढ़ जाता है तब निश्चय व व्यवहार चारित्रका विकल्प ही नहीं रहता है । तब तो निश्चय चारित्रमें जमा हुआ अंतर्मुहूर्तमें केवलज्ञानी होजाता है। यहां गाशामें यह बात स्पष्ट की है कि साधुको आहार व विहारमें पाच बातोंपर ध्यान दे लेना चाहिये। (१) यह देश जहां मैं हूं व जहां मैं जाता हूं किस प्रकास्का है। राजा न्यायी है या अन्यायी है, मंत्री न्यायी है या अन्यायी है, श्रावकोंके घर हैं या नहीं, श्रावक धर्मज्ञाता, बुद्धिमान हैं या मूर्ख हैं, श्रावकोंके घर थोड़े हैं या बहुत हैं, अजेनोंका जन साधुओंपर यहां उपसर्ग है या नहीं। इस तरह विचारकर जहां संयमके पालने में कोई बाधा नहीं मालूम पड़े उस देशमें ही, उस ग्राम या नगरमें ही साधु विहार करें, ठहरे या आहारके निमित्त नगरमें जावें । जैसे मध्यदेशमें बारह वर्षका दुष्काल जानकर श्री भद्रवाह श्रुतकेवलीने अपने चौवीस हजार मुनिसंघको यह आज्ञा की थी कि इस देशको छोड़कर दक्षिणमें जाना चाहिये । यह विचार सब अपवाद मार्ग है, परन्तु यदि साधु ऐसा न विचार करे तो निर्विघ्नपने शुद्धोपयोगरूप उत्सर्ग मार्गमें नहीं चल सके ।
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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