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________________ तृतीय खण्ड। [१३६ नहीं देखी गई है (तम्हा) इस लिये (इस्थीणं लिंग) स्त्रियोंका भेष (तप्पडिरूवं) आवरण सहित (वियप्पियं) एथक् कहा गया है । विशेषार्थ-नरक आदि गतियोंसे विलक्षण अनंत सुख आदि गुणोंके धारी सिद्धकी अवस्थाकी प्राप्ति निश्चयसे स्त्रियोंको उसी जन्ममें नहीं कही गई है । इस कारणसे उसके योग्य वस्त्र सहित भेष मुनिके निग्रंथ भेषसे अलग कहा गया है। भावार्थ-सर्वज्ञ भगवानके आगममें स्त्रियोंको मोक्ष होना उसी जन्मसे निषेधा है, क्योंकि वे नग्न निग्रंथ भेष नहीं धारण कर सक्ती न सर्व परिग्रहका त्याग कर सक्तीं। परिग्रहके त्यागके बिना प्रमत्त तथा अप्रमत्त गुणस्थानमें ही नहीं जाना हो सका है। तब फिर मोक्ष कैसे हो ? स्त्री आर्यिका होकर एक सफेद सारी रखती है इसलिये पांचवें गुणस्थान तक ही संयमकी उन्नति कर सक्ती है ॥ ३१ ॥ ___उत्थानिका-आगे कहते हैं कि स्त्रियोंके मोक्षमार्गको रोकनेकले प्रमादकी बहुत प्रबलता है पइडीपमादमइया एतासिं वित्ति भासिया पमदा। तम्हा ताओ पमदा पमादबहुलोत्ति णिदिहा ॥३२॥ प्रकृत्या प्रमादमयो एतासां वत्तिः भासिताः प्रमदाः । तस्मात् ताः प्रमदाः प्रमादबहुला इति निर्दिष्टाः ॥ ३२ ॥ अन्वय सहित सामान्यार्थ-(पयडी) स्वभावसे (एतांसिं वित्ति) इन स्त्रियोंकी परिणति (पमादमइया) प्रमादमई है (पमदा भासिया) इसलिये उनको प्रमदी कहा गया है (तम्हा) अतः (ताओ पमदा) वे स्त्रियां (पमांदबहुलोत्ति णिदिट्ठा) प्रमादसे भरी हुई हैं ऐसा कहा गया है।
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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