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________________ तृतीय खण्ड। [११६ परिग्रहका त्याग साधु क्यों करते हैं इसका हेतु यह बताया है कि विना इच्छाके बाहरी क्षेत्र, वास्तु, धन, धान्य, वस्त्रादि वस्तुओंको कौन रख सक्ता है, उठा सक्ता है व लिये २ फिर सक्ता है ! अर्थात इच्छाके विना परद्रव्यका सम्बन्ध हो ही नहीं सक्ता । इसलिये इच्छाका कारण होनेसे साधुओंने दीक्षा लेते समय सर्व ही बाह्य दस प्रकार परिग्रहका त्याग कर दिया। तथा अन्तरङ्ग चौदह प्रकार भाव परिनहसे भी ममत्व छोड़ दिया अर्थात् मिथ्यात्व, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वेद, पुवेद, नपुंसकवेदसे भी अत्यन्त उदासीन होगए। जहां इन २४ प्रकारकी परिग्रहका सम्बन्ध है वहां अवश्य बन्ध होगा। यद्यपि शरीर भी परिग्रह है परन्तु शरीरका त्याग हो नहीं सक्ता । शरीर आत्माके रहनेका निवासस्थान है तथा शरीर संयम व तपका सहकारी है। मनुष्य देहकी सहाय विना चारित्र व ध्यानका पालन हो नहीं सक्ता इसलिये उसके सिवाय जिन जिन पदार्थोंको जन्मनेके पीछे माता पिता व जनसमूहके द्वारा पाकर उनको अपना मानकर ममत्त्व किया था उनका त्याग देना शक्य है इसीलिये साधु वस्त्रमात्रका भी त्याग कर देते हैं । क्योंकि एक लंगोटीकी रक्षा भी परिणामोंमें ममता उत्पन्न कर बन्धका कारण होती है। ____ अन्तरङ्ग भावोंका त्यागना यही है कि मैं इन मिथ्यात्व व क्रोधादिकोंको परभाव मानता हूं-इनसे गिन्न अपना शुद्ध चैतन्य भाव है ऐसा निश्चय करता हूं। तथा साधु अंतरंगमें क्रोधादि न उपज आवे इस बातकी पूर्ण सम्हाल रखता है। .
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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