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________________ श्रीप्रवचनसारटोका। ये सब कथन इसी बातको पुष्ट करते हैं कि परिणामोंसे ही पाप या पुण्यका बन्ध होता है। श्री समयसारनीमें श्री कुन्दकुन्द महाराज कहते हैं:अभवसिदेण बंधो सत्ते मारे हि मा व मारहि । एसो बंधसमासो जोवाणं णिच्छयणयस्स ॥ २७४ भावार्थ-जीवोंको मारो व न मारो, हिंसा रूप भावसे ही बन्ध होगा। ऐसा वास्तवमें जीवोंमें कर्म बन्धका संक्षेप कथन है। और भी मारेमि जीवावेमि य सत्तेज एव मज्भवसिदं ते। तं पाववंधगं वा पुण्णस्स य बंधगं होदि ॥ २७३ ' भावार्थ-जो तेरे भावमें यह विकल्प है कि मैं जीवोंको मारूँ सो तो पापबंध करनेवाला है तथा जो यह विकला है कि मैं उनकी रक्षा करूँ व जिलाऊ सो पुण्यबंध करनेवाला है। जहां हिंसामें उपयोगकी तन्मयता है वहां पाप बंध है, परंतु जहां दयामें उपयोगकी तन्मयता होनेसे शुम भाव है वहां पुण्यबंध है। श्री शिवचोटी आचार्यकृत भगवतीआराधनामें अहिंसाके प्रकरणमें कहा है जीवो कसायवहुलो, संतो जीवाण घायणं कुणइ । . सो जीव वह परिहरइ, सयां जो णिज्जिय कसाऊ ॥ १६ भावार्थ-जो जीव क्रोधादि कपायोंकी तीव्रता रखते हैं वे जीव प्राणियोंका घात करनेवाले हैं तथा जो जीव इन कषायोंको जीतनेवाले हैं वे सदा ही जीव हिंसाके त्यागी हैं। . आदाणे णिखेवे वोसरणे ठाणगमणसयणेसु । सव्वत्थ अप्पमत्तो, दयावरो होइ हु अहिंसा ।। १७
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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