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________________ ११४] श्रीप्रवचनसारटोका। जितना पाप वन्ध राजाको होगा उसके कई गुणा कम पाप चाकरोको होगा। परिणामोंसे ही हिंसाका दोप लगता है इसके कुछ दृष्टांत पुरुषार्थसिद्धयुपायमें इस तरहपर हैं: अविधायापि हि हिंसा हिंसाफलभाजनं भवत्येकः । कृत्वाप्यपरो हिंसां हिंसाफलभाजनं न स्यात् ॥ ११ ॥ भावार्थ-किसीने स्वयं हिंसा नहीं की परन्तु वह हिमाके परिणाम कर रहा है इससे हिंसाके फलका भागी होता है । जैसे सेनाको युद्धार्थ भेजनेवाला राजा | दूसरा कोई हिंसा करके भी उम हिंसाके फलका भागी नहीं होता। जैसे विद्या शिक्षक गिप्यको कष्ठ देता है व राजा अपराधीको दण्ड देता है व वैद्य रोगीको चीड़ फाड़ करता है। इन तीनोंके द्वारा हिंसा हो रही है तथापि परिणाममें हिंसाका भाव नहीं है किन्तु उसके सुधारका भाव है, इससे ये तीनों पापके भागी नहीं किन्तु पुन्यके भागो हैं । एकस्याल्पा हिंसा ददाति काले फलमनल्पम् । अन्यस्य महाहिंसा स्वल्पफला भवति परिपाके ॥५२॥ . भावार्थ-एक कोई थोड़ी हिसा करे तो भी वह हिंसा अपने विपाकमें बहुत फल देती है । जैसे किसीने बड़े ही कठोर भावसे एक मक्खीको मार डाला, इसके तीव्र पाय होनेसे बहुत पापका-बंध होगा । दूसरे किसीने युद्धमें अपनी निन्दा करते हुए उस युद्धमें अहं मन्यता न रखते हुए बहुत शत्रुओंका विध्वंश शिया तो भी कषाय मंद होनेसे कम पाप कर्मका बंध होगा! .
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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