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________________ १११०.] श्रीप्रवचनसारटोका । येनांशेन चरित्र तेनांशेनास्यवंधनं नास्ति । . येनांशेन तु रागस्तनांशेनास्य बंधनं भवति ॥ २१४ ।। भावार्थ-जितने अन्शमें कषायरहित चारित्रभाव होगा उतने अंशमें इस जीवके बंध नहीं होता है, परन्तु जितना अन्य राग है उसी अंशसे बंध होगा । तात्पर्य यही है कि रागादिरूप परिणति भाव हिंसा है इसीके द्वारा द्रव्यहिंसा होसक्ती है ॥१९॥ ___उत्थानिका-आगे आचार्य निश्चय हिंसारूप जो अन्तरङ्ग. छेद है उसका सर्वथा निषेध करते हैं:- . अयदाचारो समणो छस्सुवि कायेसु वधकरोति मदो। . चरदि जदं जदि णिच्चं कमलं व जले णिरुवलेवो ॥२०॥ अयताचारः श्रमणः षट्सपि कायेषु वधकर इति मतः । चरति यतं यदि नित्यं कमलमिव जले निरुपलेपः ॥२०॥ अन्वय महिन सामान्यार्थ-( अयदाचारो समणो ) निर्मल आत्माके अनुभव करनेकी भावनारूप चेष्ठाके विना साधु (छस्सुवि कायेसु) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति तथा त्रस इन छहों ही कायोंका (वधकरोत्ति मदों) हिंसा करनेवाला माना गया है । (नदि) यदि (णिच्च) सदा ( जदं ) यत्नपूर्वक (चरदि) आचरण करता है तो (जले कमलं व णिरुवलेवो) जलमें कमलके समान कर्म बन्धके लेप रहित होता है। यदि गाथामें (वंधगोत्ति) पाठ लेवें तो यह अर्थ होगा कि अयत्न शील कम बन्ध करनेवाला है। विशेषार्थ-यहां यह भाव . बताया गया है कि जो साधु शुद्धात्माका अनुभवरूप शुद्धोपयोगमें परिणमन कर रहा है वह पृथ्वी आदि छहः कायरूप जन्तुओंसे भरे हुए इस लोक विच
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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