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________________ श्रीभवचनसार, भापाटीका ! [४७. .www.winemammi nie स्वपर टिनको ही वांछना है-शत्रुकी भी आत्माशा कल्याण चाहता ' है. इससे उसके उपयोगको शुभोपयोग कहते हैं । यद्यपि चारित्र : . अपेक्षा "शुभोपयोग है क्योंकि संक्लेश भावोंने प्रहारंभ करता. . हैं तथापि मम्यककी अपेक्षा शुभोपयोग है। जहांतक सम्बन्डष्टी' जीवके प्रवृत्ति मार्ग है बड़ा तक इसके अशुभोपयोग और शुभो. पयोग दोनों होते हैं। नारित्रकी अपेक्षा जेर सम्यक्ती तीव्र पायवान हो अधारममें प्रवर्तता है, अथवा इe वियोग अनिष्ट संयोग था पीड़ादी चिंतामें होता या पमिहमें उलझकर कुछ दृषकर लिया जाता है या परियह विमोगसे 'कुछ विषाद कर लिया ५.रता है ता इसके अशुभोपयोग होता है और जब व्यवः हार चारित्र आवक या मुनिका पाचरता है तब इसके शुभोपयोग होता है। शुभःपयोग धर्मशान जब कि अशुभोपयोगमें धर्मध्यान न होकर केवल आतं और शैन्द्र ध्यान रहता है । ये दोनों ध्यान ॐ शुग है तथापि पांच गुणस्थानवी श्रावक तक शैन ध्यान और छठे गुणस्थायी प्रमत्तविरत मुनिता आर्तव्यान रहता है। ____ यद्यपि समारीके अशुभोपयोग होता है ताकि यह , अशुभोपयोग, सम्यक्तकी भूमिका सहित है, इस कारण मिथ्या दृष्टोके अशुभोपयोगसे विलक्षण है। ' यह अशुभोपयोग भी निर्माणमें बाधक नहीं है जबकि - मिथ्याष्टोका शुभोपयोग भी मोक्षमें बाधक है । इस सिवाय ... मिथ्यादृष्टी अशुभोपयोग भैलो पारफर्म बांधता वैसा पापकर्म सम्यग्दृष्टीकर अशुभोपयोग नहीं बांधता है। क्योंकि सम्याहाटी 'नीष ४१ प्रतियोंका तो बंध ही नहीं.. करता है इसलिये वह
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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