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________________ २०], श्रीमवचमसार भाषाटीका । क्योंकि इस वीतराग विज्ञानमई मभेद रत्नत्रय स्वरूप शांतभावके ही द्वारा पूर्ववद्ध कौके बंधन टूटते हैं तथा नवीन कर्मीका संवर होता है जिसका अंतिम फळ मोक्षका प्रगट होना है। इस कथनसे श्रीकुंदकुंदस्वामीने यह भी दिखलाया है कि सम्यक्तज्ञान पूर्वक वीतराग चरित्रमई परम शांतभावके द्वारा पहले भी गवाने निर्वाण लाभ किया व मब भी निर्वाण जारहे हैं तथा भविप्य भी इस हीसे मुक्ति पाएंगे इसलिये जसे मैंने ऐसे वीतराग शारित्रका माश्रय लिया है वैसे सर्व ही मुमुक्षु जीव इस शाम्यमा शरण , अहण करो क्योकि यही मोक्षका असली साधन है। इस तरह प्रथम स्थलमें नमस्कारकी मुख्यता करके पांच गाथाएं पू हुई। उत्थानिक्षा-आगे निस वीतराग चारित्रामाश्रय लिया है वही वीतराग चारित्र प्राप्त करने योग्य अतीन्द्रिय सुखका कारण है इससे प्रष्टण करने योग्य है तथा सराग चारित्र अतीन्द्रिय मुखकी अपेक्षासे गगने योग्य इंद्रिय सुखका कारण है. इससे सराग चारित्र छोड़ने योग्य है ऐसा उपदेश करते हैं:संपनदि णिचाणं, देवासुरमणुयरायविहवेहि । जीवस्स चरित्तादो, देखणणाणप्पहाणादो॥६॥ संपद्यते निर्वाण देवासुरमनुजराजविभवैः । जीवस्य चरित्राज्ञानप्रधानात् ॥ ६॥ सामान्यार्थ-इस जीवको सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानकी मुख्यता पूर्वक चारित्रके पालनेसे देव, मसुर तथा मनुष्यराजकी सम्पदाओं के साथ मोक्षकी प्राप्ति होती है।
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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