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________________ wwwwwwwwwe श्रीप्रवचनसार भापाटीका। ३५१ तम्हा जिणमानादो गुणेहिं आदं परं च दव्वेमु। . आभिगच्छदु णि मोहं इच्छदि जदि अप्पणो अप्पा ॥१७॥ तस्मानिनमार्गाद्गुणरात्मानं परं च द्रव्येषु । अभिगच्छतु निर्मोहमिच्छति यद्यात्मन आत्मा ॥ ९७ ॥ सामान्यार्थ-इसलिये जिन भगवान कथित मार्गके द्वारा द्रव्यों से अपने, आत्मा और पर द्रव्यको उनके गुणों की अपेक्षासे नाने, यदि आत्मा अपनेको मोह रहित करना चाहता है। ___अन्वय साहित विशेषार्थः-( तम्हा ) क्योंकि पहले यह कह चुके हैं कि स्वपरके भेद विज्ञानसे मोइका क्षय होता है इसलिये ( जिणभग्गादो ) जिन आगमसे (दव्वेतु ) शुद्धात्मा आदि छः द्रव्योंके मध्यमेंसे ( गुणैः ) उन उनके गुणों के द्वारा (आदं परं च) आत्मानो और परद्रव्यको (अभिगच्छदु) जाने, (नदि ) यदि ( अप्पा ) आत्मा (अपणो) अपने भीतर (णिम्मोह ) मोह रहित गावको ( इच्छदि ) चाहता है। विशेष यह है कि जो यह मेरा चैतन्य भाव अपनेको और परको प्रकाशमान करनेवाला उसी करके मैं शुद्ध ज्ञानदर्शन भावको अपना आत्मा रूप जानता हूं तथा पर जो पुनल आदि पांच द्रव्य हैं तथा अपने जीवझे सिवाय अन्य सर्व जीव हैं उन सबको पररू. पसे जानता हूं | इस कारणसे जैसे एक घरमे जलते हुए अनेक. दीपकों का प्रकाश यद्यपि मिल रहा है तथापि सबका प्रकाश अलग अलग है । इस ही वह सर्पद्रव्यों के भीतरमें मेरा सहज शुद्ध
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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