SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ atreener arresा | [ २३७ wwwwwn मनुष्य और पशुओं को बहुत सताता है, अपने खानपान व्यवहारने दयाभावसे वर्तन नहीं करता है। दूसरे प्राणी सर्वथा नष्ट होभावे तो भी अपने विपय पाय पुष्ट करता है। राग द्वेपके चिन्ह यह हैं कि इंद्रियोंके मनोज्ञ पदार्थों में अतिशय प्रीति करना तथा जो पदार्थ अपने को नहीं रुचते हैं उनमें करना | महां थोड़ा भी पर पदार्थ पर राग या द्वेष है यहां चारित्र मोहनीका चिन्ह प्रगट होता है । राग या ईपके वशीभूत हो अपने प्रीतमनोंपर यह प्राणी तरह का उपकार करता है और जिनपर प रखता है उनका हर तरह बिगाड़ करता है। जहां उपकारी पर प्रत्र व अपकारी पर अप्रेम है वहां राग द्वेष है। जहां उपकारी पर राम व अपकारी पर द्वेष नहीं वहीं वीतरागभाव है। इन चिन्होको बतानेका प्रयोजन यही है कि जो जीप सुख शांति प्राप्त करना चाहते हैं उनको रचित है कि वे इन तीनों को छोड़ने उपाय करें और यह उपाय एक साम्यभाव या शुद्धोपयोगका अभ्यास है। इसलिये अपने शुद्ध आत्माची भावनाका अभ्यास करके इस समताभाव के कामसे राग हेप मोडको क्षय करना चाहिये । श्री योगीन्द्रदेको अमृताओतिमें मोक्ष कामके लिये नीचे प्रमाण बहुत अच्छा उपदेश दिया है वाहत्यहिरकार दुःखमारे शरीरे । क्षण पत रमन्ते मोडिनोऽस्मिन् चराकाः ॥ इति यदि च युद्धिर्निर्विकल्पापरूपे । भव भवनि भवन्नस्यायि धामधिपस्त्रम् ॥ ६५ ॥
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy