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________________ ३३२ ] श्रीमवचनमार भापाटीका । नाशक उपाय for आत्माका यथार्थ श्रद्धान ज्ञान तथा अनुभवरूप चारित्र है । निश्चय रत्नत्रय रूप आत्मा ही आपकी मुक्तिका कारण है, इमलिये मोक्षार्थी पुरुषका कर्तव्य है कि वह आत्म पुरुषार्थ करके इन संसारके कारणीभूत राग द्वेष मोहका नाश करे | जिससे यह आत्मा संसारके दुःखोंसे छूटकर निराकुल मतीन्द्रिय आनन्दका भोगने वाला सदाके लिये हो जाये । श्री श्रमितिगति णाचार्यने अपने बृहत् सामायिकपाठमें कहा है: अभ्यास्ताक्षकषायत्रैरिविजया विध्वस्तलोकक्रिया | बाह्याभ्यंतरसंगमांशविमुखाः कृत्वात्मवश्यं मनः ॥ ये श्रेष्ठं भवभोगने हर्विषयं वैराग्यमध्यासते । ते गच्छति शिवालयं विकलिला लब्ध्वा समाधिं बुधाः॥स्टि भाव यह है कि जिन्होंने इंद्रिय विषय और कपाय रूपी वैरियोंका विजय कर लिया है, लौकिक क्रियाओंको रोक दिया है, तथा अपने मनको अपने आघोन करके बाहरी भीतरी परिग्रहके लेश मात्र से भी अपनेको विमुख कर लिया है और जो संसार शरीर भोग सम्वन्धी श्रेष्ठ वैराग्यको घरनेवाले हैं वे ही बुद्धिमान -समाधिभाव को पाकर तथा शरीर रहित होकर मोक्ष प्राप्त करते हैं । श्री गुणभद्राचार्यने अपने ग्रन्थ आत्मानुशासन में कहा हैयमनियमनितान्तः शान्तवाह्यान्तरात्मा । परिणमितसमाधिः सर्वतत्वानुकम्पी ॥ विहित हितमिताशी क्लेशजालं समूलं । दहति निहतनिद्रो निश्चिताध्यात्मसारः ||२२५||
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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