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________________ anwr WWW w wwwwwwwwwww श्रीभवचनसार भाषाटीका। [२६९ धनकी सुचना की है अथवा मुख्यतासे उपासकका कर्तव्य बताया है। शुभोपयोगमें कषायोंकी मंदता होती है। वह मंद कषाय इन व्यबहार धोके पालनसे होती है जिनको गाथा सुचित किया है अर्थात् सच्चे देवताकी श्रद्धापूर्वक भक्ति और पुना करना व्यवहार धर्म है। जिसमें क्षुधादि अठारह दोष नहीं है तथा जो सर्वज्ञ सर्वदर्शी और अतींद्रिय अनन्त सुखके धारी हैं ऐसे अरहंत भगवान तथा सर्व कर्म रहित श्री सिद्ध भगवान ये ही सच्चे पूनने योग्य देवता हैं। इनके गुणों में प्रीति बढ़ाते हुए मनसे, बचनसे तथा कायसे. पूजा करना शुभोपयोगरूप है। प्रतिबिम्शेके द्वारा भी वैसी ही भक्ति हो सकी है जैसी साक्षात् समवशरणमें स्थित भरहंत भगवानकी । तथा द्रव्य पूजाके निमित्तसे भाव पूजा होती है । पूज्यके गुणोंमें उपयोगका भी जाना भाव पूना है। जल चंदनादि अष्ट द्रव्यों को चढ़ाते हुए गुणानुवाद करना अथवा कहीं कहीं श्रावक भवस्थामें व मुनि अवस्थामें केवल मुखसे पाठ द्वारा गुणोंका कथन करना व नमन करना द्रव्य, पूना है । गृहस्थोंके मुख्यतासे माठ द्रव्योंके द्वारा व कमसे कम एक द्रव्यके द्वारा पूजा होती है व गौणतासे आठ द्रव्योंके बिना स्तुति मात्र व नमस्कार मानसे भी द्रव्य पूजा होती है। मुनियों के सामनीका ग्रहण नहीं है । वे सर्व त्यागी हैं। इस लिये मुनि महाराज स्तुति व वन्दना करके द्रव्य पूजा करते हैं। जैसे नमस्कारके दो भेद हैं-द्रव्य नमस्कार व भाव नमस्कार वैसे पुनाके दो भेद हैं-द्रव्य पूजा व भाव पूजा। जिसको नमस्कार किया जाय उसके गुणोंमें लवलीनता भाव नमस्कार है वैसे जिनको
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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