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________________ mananewwwwwwww wwwww wwwAN श्रीभवचनसार भाषाटीका। [२१३. उन सर्व ज्ञेय पदार्थोंको जानता है (गाणं) वह ज्ञान (पचाख) प्रत्यक्ष ( हवदि ) होता है। यहां शिप्यने प्रश्न किया, कि ज्ञान प्रपंचका अधिकार तो पहले ही होचुका । अब इस सुख प्रपंचके अधिकारमें तो सुखका ही कथन करना योग्य है । इसका समा.. . धान यह है कि जो अतीन्द्रियज्ञान पहले कहा गया है वह ही अभेद नयसे सुख है इसकी सूचनाके लिये अथवा ज्ञानकी मुख्यतासे सुख है क्योंकि इस ज्ञानमें हेय उपादेयकी चिंता नहीं है इसके बतानेके लिये कहा है । इसतरह अतीन्द्रिय ज्ञान ही ग्रहण करने योग्य है ऐसा कहते हुए एक गाथा द्वारा दूमरा स्थल पूर्ण हुमा । भावार्थ-इस गाथामें आचार्यने अनन्त अतीन्द्रिय सुखक लिये मुख्यतासे कारण रूप तथा एक समयमें तिष्ठनेवाले प्रत्यक्ष केवलज्ञानका वर्णन इसी लिये किया है कि उस स्वाधीन ज्ञानके होते हुए किसी मानने योग्य पदार्थके जाननेकी चिंता नहीं होती है। न वहां किसीको ग्रहण या त्यागका विकल्प होता है । जहाँ चिंता तथा विकल्प है वहां निराकुलता नहीं होती है । जहाँ निश्चित व निर्विकल्प अवस्था रहती है वहां कोई प्रकार माकुलता नहीं होती है । अतीन्द्रिय आनन्दकं भोगनेमें इस निराकुलताकी आवश्यक्ता है । यह केवलज्ञान अपने आत्माके तथा पर आत्माओंके तथा अन्य सर्व द्रव्योंके तीन कालवी द्रव्य क्षेत्र काल भावोंको जानता है । जो ज्ञान पांच इन्द्रिय तथा मनके द्वारा होना असंभव है वह सर्व ज्ञान केवलज्ञानीको प्रत्यक्ष होता है वह मूर्त और अमूर्त सर्व द्रव्योंको जानता है तथा इन्द्रियोंके
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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