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________________ ma r waryana श्रीमवंचनसार भाषाटीका। [१७३ . • उदयसे मायाचारका भाव बुद्धिपूर्वक करते हुए भी स्त्रियोंमें मावाचार रूप भाव और वर्तन हो जाता है। यह बात अधिकतर स्त्रियों में पाई जाती है इसीसे आचार्यने बताया है कि जैसे स्त्रियों के मायाचार कर्माके उदयके कारणसे स्वभावसे होता है वैसे स्वभावसे ही केवली के फर्मोके उदयके द्वारा विहारादिक होते हैं । वृत्तिकारने मेघोंका दृष्टांत दिया है कि जैसे मेघ स्वभावसे ही लोगोंके पाप पुण्यफे उदयसे चलते, ठहरते, गर्जते तथा वर्षते हैं वैसे केवली भगवानका विहार व धर्मोपदेश स्वभावसे होता है तथा इसमें भव्यजीवोंके पापपुण्यका उदयका भी निमित्त पड़ जाता है । जहाँके लोगोंके पापका उदय तीव्र होता है वहां केवली महाराजका न विहार होता है न धर्मोपदेश, किन्तु जहांके जीवोंका तीव्र पुण्यका उदय होता है वहां ही केवली महाराजज्ञा विहार तथा. धर्मोपदेश होता है । विना इच्छाके पुद्गलकी प्रेरणासे बहुतसी क्रियाएं हमारे शरीर व वचनमें भी होनाती हैं । जैसे श्वासका लेना, चारों तरफकी हवा व परमाणुओंका शरीरमें प्रवेश, भोजन पानका शरीरमें गलन, पचन, रुधिर मांसादि निर्मापन, रोगोंकी उत्पत्ति, आंखोंका फड़कना, छींक माना, जमाई आना, शरीरका बढ़ना, बालोंका उगना भूख प्यासका लगना, इंद्रियोंका पुष्ट होना, मागमें चलते चलते पूर्व अभ्याससे विना चाहे हुए मार्गकी तरफ चले जाना, स्वप्न व निद्रामें चौंक उठना, बड़बड़ाना, बोलना, अभ्यासके बलसे अन्य विचार करते हुए मुखसे अभ्यस्त पाठोंश निकलनाना मादि। इनको भादि लेकर हजारों वचन व कायके व्यापार हमारी अबुद्धि
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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