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________________ श्रीमaarसार भाषाटीका । [ 20 wwwwww w varin भावार्थ - यहां आचार्य ने बताया है कि गुण और गुणी एक क्षेत्रावगाही होते हैं तथा हरएक गुण अपने आधारभूत द्रव्यमें व्यापक होता है । जितने प्रदेश द्रव्यके होते हैं उतने ही प्रदेश गुण होते हैं । ऐसा होनेपर भी गुण स्वतंत्रता से अपना अपना कार्य करता है। यहां आत्मा द्रव्य है, और उसका मुख्य गुण ज्ञान है | ज्ञान मात्मा के प्रमाण है खात्मा ज्ञानके प्रमाण है । आत्मा असंख्यात प्रदेशी है इसलिये उसका ज्ञान गुण भी असंख्यात प्रदेशी है । दोनोंका तादात्म्य सम्बन्ध है, जो कभी अलग नहीं था न अलग हो सकता है । यद्यपि, ज्ञान गुणकी सत्ता आत्मा में ही है तथापि ज्ञान गुण अपने पूर्ण कार्यको करता है अर्थात् सर्व जानने योग्य पदार्थोंको जानता है, कोई ज्ञेय उससे बाहर नहीं रह जाता इससे विषयकी अपेक्षा ज्ञान ज्ञेयोंके बराबर है । ज्ञेयका विस्तार देखा जाय तो सर्व लोक और अलोक है । जितने द्रव्य गुण व तीनकालवर्ती पर्याय हैं वे सब जाननेके विषय हैं और ज्ञान उन सबको जानता है इस कारण ज्ञानको सर्वगत या सर्दव्यापक कह सकते हैं । यहां पर आंखका दृष्टांत है । जैसे आंखकी पुतली अपने 1 स्थान पर रहती हुई भी बिना स्पर्श किये बहुत दूर से भी पदार्थोंको जान लेती हैं, ऐसे ही ज्ञान आत्माके पदेशोंमें ही रहता है तथापि विषयकी अपेक्षा सर्व लोकालोको जानता है | यहां पर 1 कोई २ ज्ञानको सर्वथा व्याकाश प्रमाण व्यापक मान लेते हैं उनका निषेध किया कि ज्ञान द्रव्यको छोड़कर चला नहीं जाता । वह sterolest जानता है तथापि आत्मामें ही रहता है । कोई २.
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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