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________________ न्यायशास्त्र सुबोधटीकायां षष्ठः परिच्छेदः। १०१ अर्थ-शब्द परिणामी (अनित्य) होता है, क्योंकि वह चक्षु से जाना जाता है । यहां 'चक्षु से जाना जाता है' यह हेतु स्वरूप से ही असिद्ध है, क्योंकि शब्द चक्षु से नहीं, किन्तु कर्ण से जाना जाता है ॥२३॥ संस्कृतार्थ-- परिणामी शब्दश्चाक्षुषत्वात् । अत्रायं चाक्षुषत्वं हेतुः स्वरूपासिद्धो विद्यते । यतः शब्दो नेत्रान्नो ज्ञायते, किन्तु कर्णाज्ज्ञायते। अतोऽ विद्यमानसत्ताकत्वेन स्वरूपासिद्धो जातः ॥२३॥ २२ वें सूत्र में चाक्षुषत्वहेतु के स्वरूपासिद्ध होने में हेतु-- स्वरूपेणासत्वात् ॥२४॥ . अर्थ-शब्द कर्ण से जाना जाता है, चक्षु से नहीं। इसलिये शब्द चक्षु से जाना जाता है यह कहना स्वरूप से ही ठीक नहीं है ॥२४॥ संस्कृतार्थ-शब्द: कर्णन ज्ञायते, चक्षुषा नो । अतः शब्दस्य चाक्षुषत्वव्यावर्णनं स्वरूपेणैव नोचितम् ॥२४॥ . सन्दिग्धासिद्धोदाहरणम्, सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास का उदाहरणব্রেহ্মাললিছত্মজী জুয়েমুক্তি গ্রন্থির স্থূলা ॥২৷৷ अर्थ-किसी अज्ञान व्यक्ति से यह कहना कि यहां अग्नि है, क्योंकि धूम है । यहां यह धूमहेतु उसके 'सन्दिग्धासिद्ध' हेत्वाभाल है ॥२५॥ संस्कृतार्थ-- मुग्धप्रति 'अग्निर धूमात्' इति कथनम्' सन्दिग्क्षासिद्धो हेत्वाभासो बिशेयः ॥२५॥ धूमत्वहेतु के सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास होने में हेतुतस्य याज्याहिभावेन भूतसंघाने सन्छेहात ॥२६॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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