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________________ १०० श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे अर्थ-मेरी माता बन्ध्या है, क्योंकि पुरुष का संयोग होने पर भी उसके गर्भ नहीं रहता। जिसके पुरुष के संयोग होने पर भी गर्भ नहीं रहता, वह बन्ध्या कहलाती है, जैसे प्रसिद्ध बन्ध्या स्त्री। स्वयं मीणूद है, अपनी माता भी स्वीकार कर रहा है फिर भी कहता है, कि मेरी माता बन्ध्या है। यह पक्ष उसी के वचन ( मेरी माता ) से बाधित है॥ २० ॥ संस्कृतार्थ-माता मे बन्ध्या, पुरुषसंयोगे 5 प्यगर्भयात् प्रसिद्धबन्ध्यावत् । स्वस्मिन् पुत्रत्वं, जनन्यां मातृत्वं वा स्वीकुर्वन्नपि कथयति.. यन्माता मे बन्ध्या । अतोऽत्रायं पक्षः स्ववचनबाधितो विद्यते ।। २० ॥ हेत्वाभासभेदाः, हेत्वाभास के भेदহিত্যাঙ্গারা জবিবি ফাক্লিাজাফিজিয়ফা: अर्थ- प्रसिद्ध, विरुद्ध अनैकान्तिक और अकिञ्चित्कर ये चार हेमाभारः के भेद हैं । प्रसिद्धः, विरुद्धः, अनेकान्तिकः, अकिञ्चित्कर चेति चत्वारो हेत्वाभासा विद्यन्ते ॥ २१ ।। असिद्धहेत्वाभास के भेद और स्वरूप असत्सत्तानिश्चयो ऽसिद्धः । २२ । अर्थ- स्वरूपासिद्ध और सन्दिग्धा सिद्ध ये दो प्रसिद्ध हेत्वामास के भेद हैं । जिस हेतु की सत्ता का अभाव हो उस हेतु को स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास कहते हैं और पक्ष में जिस हेतु का निश्चय न हो उसे सन्दिग्धासिद्ध हेत्वाभास कहते हैं ॥ २२ ॥ संस्कृतार्थ-स्वरूपासिद्धः, सन्दिग्धासिद्धश्चेति द्वौ प्रसिद्धहेत्वाभासभेदी स्तः । तत्राविद्यमानसत्ताको हेतु: स्वरूपासिद्धः । अविद्यमाननिश्चयो वा हेतुः सन्दिग्धासिद्धो हेत्वाभासो विज्ञेयः ।। २२ ॥ स्वरूपासिद्ध हेत्वाभास का दृष्टान्त- ।। জৰিলালাবাফ, আহজালী : প্রত্যন্ত ।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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