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________________ १० श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविचित पराक्षामुख विशेषस्य भेदी, विशेष के भेद विशेषश्च । ६ । अर्थ-विशेष के भी दो भेद हैं । संस्कृतार्थ- विशेष स्यापि द्वौ भेदौ विद्यते ॥ ६ ॥ विशेषभेदस्य नाम्नी, विशेष के भेदों के नाम पर्यायव्यतिरेक भेदात ।७। पर्यायो व्यतिरेकश्चेति द्वौ विशेषस्य भेदी स्तः ॥ ७ ॥ पर्याय विशेष का स्वरूप वा उदाहरण एकस्मिन्द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्यायाः आत्मनि हर्षविषादादिवत् । ८। अर्थ-एक द्रव्य में क्रम से होने वाले परिणामों को पर्याय कहते हैं जैसे-पात्मा में हर्ष और विषाद आदि ॥ ८ ॥ संस्कृतार्थ- एकस्मिन्द्रव्ये क्रमशः समुत्पद्यमाना भावा पर्यायविशेषाः प्रोच्यन्ते । यधात्मनि हर्ष विषादादयो भावाः ॥ ८ ॥ ___ व्यतिरेकविशेष का लक्षण वा उदाहरण থানা বিছাৰিাহ্মী নিইফ ঘান্তিলা दिवत् । ९ ।। अर्थ---एक पदार्थ की अपेक्षा दूसरे पदार्थों में रहने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेक कहते हैं। जैसे—गो से महिष ( भैंसा ) में एक विलक्षण ( भिन्न ) ही परिणमन होता है ।। ६॥ संस्कृतार्थ-अन्ये अर्थाः अर्थान्तराणि, तानि गतः इत्यर्थान्तरगतः। विसदृशश्चासौ परिणामो विसदृशपरिणामः । तथा च भिन्नभिन्नपदार्थनिष्ठत्वे सति विलक्षणधर्मत्वं नाम व्यतिरेकत्वम् । यथा पारस्परिकवैलक्षण्यविशिष्टा गोमहिषादय स्तिर्यञ्चः। इति चतुर्थः परिच्छेदः समाप्तः।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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