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________________ १०८ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखेइसलिये उभय विकल (असिद्धसाध्यसाधन) अन्वयदृष्टान्ताभास है ॥४१॥ .. संस्कृतार्थ-असिद्धसाध्यस्यान्वयदृष्टान्ताभासस्योदाहरणम् -- शब्दोऽपौरुषेयः अमूर्तत्वात्, इन्द्रियजन्यसुखवत् । अत्रेन्द्रियसुखस्य पौरुषोयत्वाद् असिद्धसाध्यत्वम् । अथ च—पूर्वोक्तानुमाने परमाणुः प्रसिद्धसाधनान्वयदृष्टान्ताभासो भवति । परमाणोः अमूर्तत्वाभावादसिद्धसाधनत्वम् । किञ्च-पूर्वोक्तानुमाने घटोऽसिद्धोभयान्वयदृष्टान्ताभासो जायते । घटस्य अपौरुषेयत्वाभावात् . अमूर्तिकत्वाभावाचासिद्धोभयत्वम् ॥ ४१॥ .... विशेषार्थ-जो दृष्टान्त अन्वयव्याप्ति दिखा कर दिया जाता है उसको अन्वयदृष्टान्त कहते हैं । उस व्याप्ति में दो वस्तुएं होती हैं, एक साध्य और दूसरा साधन । जिस दृष्टान्त में साध्य न होगा वह साध्य ...... से, जिसमें साधन न होगा वह साधन से और जिसमें दोनों नहीं होंगे। वह दोनों से रहित कहा जावेगा ।। ४१ ।। अन्वयदृष्टान्ताभास का उदाहरणान्तरविपरीतान्वयश्च यक्षपौरुषेयं तदभूतम् ॥ ४२ ॥ . अर्थ- पूर्वोक्तानुमान में- जो अपौरुषेय होता है वह अमूर्त होता है, इस प्रकार उलटा अन्वय दिखाने को भी अन्वय दृष्टान्ताभास कहते हैं ॥ ४२ ॥ संस्कृतार्थ- यत्र साध्यसाधनयोः बैपरीत्येन अन्यव्याप्तिः प्रदयेते सोऽयन्वयदृष्टान्ताभासो निगद्यते। तद्यथा यदपौरुषेयं तदमूर्वम् , यथा गगनम् । प्रत्र गगनस्यान्वयदृष्टान्ताभासत्वम् , विद्युदादेः पीरुण-.. यत्वेऽपि अमूर्तत्वाभावात् ।। ४२॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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