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________________ मित्र-भेद कहा भी है_ "अगर सेवक के देखते हुए और जान रहते हुए भी स्वामी पर मुसीबत पड़े तो वह सेवक नरक में जाता है।" इसके बाद वे सब आँखों में आँसू भरकर मदोत्कट को प्रणाम करके वैठ गए। उन्हें देखकर मदोत्कट ने कहा , “अरे, क्या तुम्हें कोई जीव मिला या दिखलाई दिया? उस पर उनके बीच से कौआ बोला , " स्वामी! सब जगह घूमे, पर न तो कोई जानवर दिखलाई दिया न मिला ; इसलिए हे स्वामी ! आप मुझे खाकर अपनी जान बचाइये। इससे आप की तृप्ति होगी और मुझे स्वर्ग-प्राप्ति । कहा भी है-- "भक्ति के साथ जो सेवक स्वामी के लिए अपनी जान देता है, उसे ___बुढ़ापा और मृत्यु से रहित परम पद प्राप्त होता है।" यह सुनकर सियार बोला,"अरे! तुम्हारा तो छोटा-सा शरीर है, तुम्हें खाकर भी स्वामी की देह नहीं चल सकतीं और उन्हें दोष भी लगेगा। कहा है कि "थोड़े-थोड़े और बल न देने वाले कौए का मांस और कुत्ते का जूठा खाने से क्या लाभ कि जिससे तृप्ति न हो? पर तूने जो अपनी स्वामी-भक्ति दिखलाई है उससे तू स्वामी के भोजन के ऋण से उऋण होगया और दोनों लोक में तेरी प्रशंसा हुई। अब तू आगे से हट, मैं स्वामी से कुछ निवेदन करूं । कौए के ऐसा करने पर सियार हाथ जोड़कर खड़ा रहा और बोला , “स्वामी ! मुझे खाकर, आप अपनी जान बचाइये और मुझे यह लोक और परलोक बनाने दीजिए। कहा है कि "धन से खरीदे हुए सेवकों की जान हमेशा मालिक के अधीन रहती है , और उस जान को लेने से स्वामी को हत्या का दोष नहीं लगता।" यह सुनकर चीता बोला , "अरे! तूने ठीक कहा । फिर भी तू छोटे शरीर वाला और कुत्ते की जात का है। पंजों वाला होने से तू खाने
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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